Monday, January 13, 2025

उम्मीद: वंदना मिश्रा

वंदना मिश्रा

ये जो माता-पिता,
भाई-भाभी के जाने के बाद भी

न जाने किस उम्मीद में
मायके की दहलीज़ पर
ठिठक के रुक गई हैं

उनके बूढ़े हाथों को
प्यार से थाम लो
भतीजों!

ये बूढ़े काँपते हाथ
सावन में
कुछ माँगने नहीं
आशीर्वाद के लिए
उठने आएं हैं

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