प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर-231001
वह गुस्सा थी हर बात से
हर बात में
कभी खुलकर कभी बेबसी में
मन ही मन
अगर पसंद की बात हो तो
उसे अपना नाम भी नहीं पसंद था
जिसे कहीं भी लिख देने के लिए
उसकी कलम मचल जाती थी
यही नहीं लकड़ी के टुकड़े तथा कोयले तक से
उकेर देती थी जिसे यहाँ -वहाँ
जब तब
पर अंतरंग लोगों से
हजार बार कह चुकी थी अपना नाम
न पसंद आने की बात
यह अलग बात थी कि
मां-बाप से नाराजगी के बाद भी
सारी उम्र ढूंढ नहीं पाई
अपने लिए दूसरा नाम
समय काट लिया उसी पुराने नाम से
खूब जानी पहचानी भी गई उसी से
पर नाम देने वाले मां बाप पूछो
तो
अपनी छोटी सी नाक के लिए नाराज थी मां से
पिता से भी कि क्यों नहीं दे दी
अपनी सुतवा नुकीली नाक भाई के जैसी
घंटों लड़ती थी पिता से
और लड़ना भूल जाती थी जब मां
हिरनी सी आंखें भर लेती थी आंसू से ,
लिपट जाती थी और गर्व से भर जाती थी
उन आंखों के लिए
भाइयों से बहनों से नाराज होने के
अपने कारण थे
और भगवान से दूसरे
टीचर और मित्रों से तो असंख्य
मतलब यह कि
दो मुलाकातों के बाद
ऐसा कोई नहीं था जिससे
वह प्रेम न करें
और जिस पर उसे गुस्सा ना आए
बाद में उसे समझ आया कि
उसका गुस्सा इसलिए है
कि प्रेम करती है वह सबसे
और फिर खुद से गुस्सा रही उम्र भर