धान की खरीद के लिए केंद्र सरकार ने किया 159,659.59 करोड़ रुपये के एमएसपी का भुगतान

धान की खरीद करने वाली सरकारी नीति का व्यापक उद्देश्य, किसानों को उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना एवं कमजोर वर्गों को वहन करने योग्य वाली कीमत पर उनको भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से प्रभावी बाजार मध्यवर्तन भी सुनिश्चित किया जाता है, जिससे अनाज की कीमतों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके और देश की समग्र खाद्य सुरक्षा को भी बढ़वा दिया जा सके।

खरीफ विपणन मौसम 2022-23 (22.05.2023 तक) तक, चावल का उत्पादन 1308.37 एलएमटी (दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार), चावल के खरीद का अनुमान 626.06 एलएमटी और खरीदे गए चावल की मात्रा 520.63 लाख मीट्रिक टन है। खरीफ विपणन मौसम 2022-23 (22.05.2023 तक) में, इसके द्वारा 159,659.59 करोड़ रुपये के एमएसपी का भुगतान किया गया और इसके माध्यम से 1,12,96,159 किसानों का लाभ प्राप्त हुआ।

भारतीय खाद्य निगम, भारत सरकार की नोडल केंद्रीय एजेंसी है जो राज्यों की अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत धान की खरीद करती है। वैसे घान की खरीद का काम मुख्य रूप से राज्य सरकारें एवं उसकी एजेंसियों करती हैं।

प्रत्येक वर्ष रबी/खरीफ फसल के मौसम के दौरान और उसकी कटाई होने से पहले,  भारत सरकार द्वारा कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश के आधार पर खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की जाती है, जिसमें अन्य कारकों के साथ विभिन्न कृषि आदानों की लागत एवं किसानों के लिए उनकी उपज का सही मार्जिन प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है। सरकार द्वारा प्रदान किए गए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का पैम्फलेट, बैनर, साइन बोर्ड, रेडियो, टीवी, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापनों के माध्यम से व्यापक प्रचार भी किया जाता है।

किसानों को गुणवत्ता विनिर्देशों एवं खरीद प्रणाली आदि की जानकारी प्रदान की जाती है जिससे उन्हें अपनी उपज को विनिर्देशों के अनुरूप लाने की सुविधा प्राप्त हो सके। इन खरीद केंद्रों को राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। उत्पादन, विपणन योग्य अधिशेष, किसानों की सुविधा, भंडारण एवं परिवहन आदि जैसी अन्य संचालन/अवसंरचनाओं की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए, किसानों की सुविधा के लिए प्रमुख जगहों पर मौजूदा मंडियों, डिपो/गोदामों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में अस्थायी क्रय केन्द्र भी स्थापित किए जाते हैं।

इस प्रणाली को और भी मजबूती प्रदान करते हुए, जिससे किसानों को सीधे भारत सरकार द्वारा घोषित की गई एमएसपी प्राप्त हो सके, “वन नेशन, वन एमएसपी डीबीटी के माध्यम से” पूरे देश में 2021-22 से लागू किया गया। एमएसपी का भुगतान सीधे किसानों के खाते में सुनिश्चित किया गया है। डीबीटी के माध्यम से काल्पनिक किसानों की संख्या को समाप्त किया गया है और भुगतान के गलत व्यक्ति के पास जाने एवं दोहराव को नगण्य किया गया है क्योंकि अब भुगतान सीधे किसान के बैंक खाते में किया जा रहा है। एमएसपी का वितरण करने में डीबीटी अपने साथ जिम्मेदारी, पारदर्शिता एवं ईमानदारी लेकर आया है।

खरीद केन्द्रों पर जिस धान को लाया जाता है वह निर्धारित विनिर्देशों के अंतर्गत होता है और उसकी निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदारी की जाती है। अगर किसानों को अन्य खरीदारों जैसे व्यापारियों/मिल मालिकों आदि से इसका मूल्य से बेहतर प्राप्त होता है, तो वे अपनी उपज उन्हें बेचने के लिए स्वतंत्र होते हैं। भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकार/एजेंसियां यह सुनिश्चित करती हैं कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर अपनी उपज को बेचने के लिए बाध्य न होना पड़े।

खरीद प्रणाली:

धान की खरीद केंद्रीकृत एवं विकेन्द्रीकृत खरीद प्रणालियों के माध्यम से की जाती है।

केंद्रीकृत (गैर-एमएसपी) खरीद प्रणाली:

केन्द्रीकृत खरीद प्रणाली के अंतर्गत, केन्द्रीय पूल में खाद्यान्नों की खरीद या तो भारतीय खाद्य निगम द्वारा सीधे तौर पर अथवा राज्य सरकार की एजेंसियों (एसजीए) के माध्यम से की जाती है। एसजीए द्वारा खरीदे गए धान का भंडारण भारतीय खाद्य निगम को सौंप दिया जाता है और उसी राज्य में भारत सरकार द्वारा किए गए आवंटनों के लिए जारी किया जाता है या फिर अधिशेष स्टॉक को अन्य राज्यों में भेज दिया जाता है। राज्य एजेंसियों द्वारा खरीदे गए खाद्यान्न की लागत की प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा अनंतिम प्रति लागत-पत्र के आधार पर एफसीआई द्वारा की जाती है, जैसे ही स्टॉक एफसीआई को सुपुर्द किया जाता है।

विकेंद्रीकृत (एमएसपी) खरीद

खाद्यान्नों की विकेन्द्रीकृत खरीद वाली योजना केंद्र सरकार ने 1997-98 में शुरू की थी जिससे खरीद एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दक्षता में वृद्धि की जा सके और अधिकतम रूप से स्थानीय खरीद को बढ़ावा दिया जा सके, जिससे स्थानीय किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ प्राप्त हो सके और उनके आवागमन की लागत में भी बचत हो सके। यह स्थानीय स्वाद की प्राप्ति के अनुकूल भी खाद्यान्नों की खरीद को सक्षम बनाता है। इस योजना के अंतर्गत, राज्य सरकार स्वयं धान/चावल/ गेहूं की सीधी खरीद करती है और एनएफएसए तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत इन खाद्यान्नों का भंडारण एवं वितरण भी करती है। केंद्र सरकार अनुमोदित लागत के अनुसार, खरीद पर राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए संपूर्ण व्यय को पूरा करने का उत्तरदायित्व लेती है। केंद्र सरकार इस योजना के अंतर्गत खरीदे गए खाद्यान्नों की गुणवत्ता की निगरानी भी करती है और खरीद कार्यों को सुचारु रूप से चलाने वाली व्यवस्थाओं की समीक्षा भी करती है।