Saturday, December 28, 2024
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कार्बन-डाई-ऑक्साइड से भी खतरनाक ग्रीनहाउस गैस मीथेन का खात्मा करेंगे मीथेन ईटिंग ककुम्बर्स

चावल के खेतों और आर्द्रभूमियों से रिपोर्ट की गई भारत की स्वदेशी प्राकृतिक मीथेन शमन एजेंटों के पहले संवर्धन (कल्चर) मुख्य रूप से पश्चिमी भारत से, आगामी जलवायु संबंधी चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकते हैं। जबकि एक ओर दुनिया वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का सामना कर रही है, वहीं इस विश्व में कुछ मेहनती सूक्ष्म जीव हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों को कम करने में अपना काम बखूबी कर रहे हैं।

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस मीथेन में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की तुलना में 26 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता है। आर्द्र भूमि (वेटलैंड्स,) जुगाली करने वाले पशु, धान के खेत, लैंडफिल मिथेनोजेन्स की क्रिया द्वारा उत्पादित मीथेन के स्रोत हैं। प्रतिकारात्मक तरीके से, मीथेनोट्रॉफ़्स या मीथेन ऑक्सीकरण करने वाले बैक्टीरिया इस मीथेन को ऑक्सीकरण करते हैं और अपने बायोमास का निर्माण करते हुए ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) और पानी (एच2ओ) का ठीक हमारी तरह उत्पादन करते हैं।

मीथेनोट्रॉफ़्स प्राकृतिक मीथेन शमन एजेंट हैं और उन सभी वातावरणों में मौजूद हैं जहां मीथेन और ऑक्सीजन दोनों उपलब्ध हैं। आर्द्रभूमि, धान के खेत, तालाब और अन्य जल निकाय ऐसे आवास हैं जहां ये बहुतायत में उगते हैं। यह मीथेनोट्रॉफ़ की गतिविधियों के कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में वायुमंडलीय मीथेन मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं हुई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, एमएसीएस अगरकर अनुसंधान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. मोनाली राहलकर ने अपनी टीम के साथ, मुख्य रूप से पश्चिमी भारत से धान के खेतों और आर्द्रभूमि से स्वदेशी मेथनोट्रॉफ़ की भारत के पहले संवर्धन संस्करण (कल्चर) को अलग करने के साथ ही उनका वर्णन किया है।

भारत से मेथनोट्रॉफ़ को अलग करते हुए, उन्होंने भारत से पहला अनूठा मेथनोट्रोफ़ विवरण और एक नया जैव कुल (जीनस) और प्रजाति- मिथाइलोकुकुमिस ओराइजी प्रकाशित किया। इस मीथेनोट्रॉफ़ की ख़ासियत यह थी कि इसमें खीरे के समान एक विशिष्ट अंडाकार और लम्बी आकृति थी और इसलिए इस अनूठे कुल (जीनस) को ‘मीथेन खाने वाले खीरे (मीथेन ईटिंग ककुम्बर्स)’ नाम दिया गया था। उनकी टीम बाद के वर्षों में इस विशेष मिथेनोट्रॉफ़ के अलगाव के बावजूद चावल के खेत से एक और समान जीव का संवर्धन कर सकती है।

हाल ही में मिथाइलोकुकुमिस ओराइजी को पुणे में एक पत्थर की खदान के महत्वपूर्ण मेथनोट्रोफ़ घटक के रूप में पाया गया, जो लोकप्रिय पहाड़ी, वेताल टेकडी या एआरएआई पहाड़ी के बीच स्थित है। इस पहाड़ी की अपनी अनूठी वनस्पतियां और जीव-जंतु हैं जिनमें अद्वितीय अकशेरुकी (इन्वरटीब्रेट्स) और मोलस्क वाले पत्थर खदान जल भी शामिल हैं। डॉ. रहालकर की टीम ने हाल ही में पानी से भरी खदान में मिथेनोट्रॉफ़ की प्रचुरता का दस्तावेजीकरण किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस अद्वितीय आवास में एक सक्रिय मीथेन चक्र संचालित होता है। लगभग 6 वर्षों के विवरण और इसके पहले सदस्य के लगभग 10 वर्षों के अलगाव के बाद, मिथाइलोकुकुमिस ओराइजी फ़ाइलोजेनेटिक रूप से अद्वितीय बना हुआ है।

विश्व  के किसी भी अन्य देश या हिस्से से कोई भी प्रकार की सूचना या संवर्धन नहीं किया गया है। अन्य जीवाणुओं की तुलना में इसका आकार उल्लेखनीय रूप से बड़ा है और यह एक छोटे खमीर (यीस्ट) (3-6 µm) के आकार के बराबर है। इस जीवाणु की एक और अनूठी विशेषता यह है कि इसकी सख्त मेसोफिलिक प्रकृति है और यह 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान को सहन नहीं कर सकता है, जबकि अधिकांश अन्य मिथेनोट्रॉफ़ 37 डिग्री सेल्सियस या 40 डिग्री सेल्सियस को भी सह सकने के साथ ही अपनी वृद्धि कर  सकते हैं।

यह जीवाणु हल्के-हल्के गुलाबी रंग के उपनिवेश (कॉलोनी) बनाता है और जीनोम कैरोटीनॉयड मार्ग का संकेतक है। हाल के वर्षों में यह मिथेनोट्रोफ़ धान के पौधों में जल्दी बाल आने और अनाज की उपज में वृद्धि करके उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए भी पाया गया है। स्थानीय लोकप्रिय उच्च उपज देने वाली चावल की किस्म इंद्रायणी का उपयोग करके पॉट प्रयोगों में प्रत्यारोपित चावल के पौधों में मिथेनोट्रोफ़ जोड़ा गया था। मिथाइलोकुकुमिस के साथ वर्तमान बाधाएं धीमी वृद्धि हैं जो शमन और जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक इस संवर्धन को बड़े पैमाने पर बढ़ने से रोकती हैं।

फिर भी इस बात के प्रमाण हैं कि यह जीव प्रकृति में आर्द्रभूमियों और धान के खेतों में बहुतायत में विद्यमान है और अपना कार्य सावधानीपूर्वक कर सकता है। अद्वितीय मिथेनोट्रॉफ़ मिथाइलोकुकुमिस ओराइजी के बारे में यह जानकारी हाल ही में इंडियन जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुई थी। इस मिथेनोट्रॉफ़ और इसके जीनोम के तीन उपभेदों पर पहले की रिपोर्टें माइक्रोबियल इकोलॉजी, एंटोनी वैन लीउवेनहॉक, फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी और इंटरनेशनल माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुई हैं।

आगामी जलवायु चुनौतियों के संबंध में इस महत्वपूर्ण समूह के आगे के अध्ययन के लिए इस तरह के एक अद्वितीय और संभवतः स्थानिक मिथेनोट्रॉफ़ की खोज महत्वपूर्ण है। संवर्धन  स्थितियों (कल्चर कंडीशंस) में और अधिक सुधार के साथ ही बड़े पैमाने पर खेती से इस जीव के अधिक अनुप्रयोगों में सहायता मिल सकती है।

लेख का लिंक: https://rdcu.be/dMUUw

Insights into Methylocucumis oryzae, a Large-sized, Phylogenetically Unique Type Ia Methanotroph with Biotechnological Potential | Indian Journal of Microbiology (springer.com)

Diverse type I and type II methanotrophs cultivated from an Indian freshwater wetland habitat | International Microbiology (springer.com)

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