Saturday, December 28, 2024
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पत्रकारिता और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान: सोनल मंजू श्री ओमर

सोनल मंजू श्री ओमर
राजकोट, गुजरात

माना जाता है कि जिस देश मे स्त्रियों का सम्मान होता है वह देश अधिक उन्नति करता है। भारतीय समाज में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है लेकिन देवी का दर्जा देना ही काफी नही है। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये नारी को सभी क्षेत्र में पुरुषों जितनी भागीदारी एवं समान अवसर भी देने होंगे।

नारियों के लिए आज की स्थिति फिर भी पहले से बेहतर है। लेकिन आज से कुछ वर्षों पहले किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं की संख्या सिर्फ अंगुलियों पर गिनी जाने वाली थी। लेकिन अब समाज द्वारा वैश्विक स्तर पर सभी तरह के उद्यमों में महिलाओं के योगदान को स्वीकार किया गया है। आज यह बात बिना किसी संदेह के साबित हो चुकी है कि कारोबार, तकनीकी, मीडिया, खेल या शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर और प्रोत्साहन मिलने पर महिलाओं की क्षमता अपने समकक्ष पुरुषों से कतई कम नहीं हैं। नारियों ने समय-समय पर इस बात को साबित भी किया है।

कुछ वर्षों पहले तक स्त्रियों को शिक्षा से तकनीकी(प्रौद्योगिकी) से दूर रखा जाता था यह बोलकर की यह उनकी समझ के कार्य नही है, जबकि ऐसा नही है, नारी यदि चाह ले तो ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नही कर सकती। अगर पुराणों का भी अनुसरण करें तो उसमें भी यही पाएंगे कि नारी शक्ति से ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है। माता शक्ति से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश है। देखा जाए तो नारी स्वयं एक तकनीकी है। वो जिसप्रकार अपने गर्भ में एक जीव का सृजन करती है, नौ माह तक अपने अंदर उसे पालती है। यह तकनीकी से कम नहीं है।

यह कई बार साबित हो चुका है कि महिलाएं वैज्ञानिक अनुसंधान करने और दुनिया को बदलने के लिए अपनी प्रतिभा का योगदान देने में पुरुषों से कम नहीं हैं। हमारे पास असंख्य उदाहरण हैं जो इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे हमने अपने-अपने क्षेत्रों में लड़कियों और महिलाओं के योगदान के कारण वैज्ञानिक क्षेत्रों में अपने विचारों को बदल दिया है। खगोलविज्ञान, जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित, जैव प्रौद्योगिकी, नैनो टेक्नोलाजी, भूगोल, पर्यावरण विज्ञान, नृजाति विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, परमाणु अनुसंधान, कम्प्यूटर विज्ञान, मौसम विज्ञान, कृषि विज्ञान तथा इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिको ने नित नये अनुसंधान कर अपनी बुद्धि व कौशल का लोहा मनवाया हैं। 

तमाम तरह की चुनौतियों के बावजूद इसरो में चंद्रयान मिशन हो या फिर मंगल मिशन की सफलता, नासा से लेकर नोबेल पुरस्कार तक हर क्षेत्र में हमारी महिला वैज्ञानिकों ने अपनी कला कौशल का प्रदर्शन किया है। चारदीवारी की कैद व सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर विज्ञान की दुनिया में कीर्तिमान स्थापित करने वाली कुछ महिला वैज्ञानिकों के नाम इस प्रकार हैं

आनंदीबाई गोपालराव जोशी

इनका जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे शहर में हुआ था। ये भारत की पहली महिला थीं जिन्होंने विदेश में डॉक्टर की डिग्री हासिल की, और भारत की पहली महिला फिजीशयन बनी। इनकी शादी महज 9 साल की उम्र में हो गई थी और 14 साल की उम्र में मां भी बन गई थीं, लेकिन इन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं को दम तोड़ने नहीं दिया। किसी दवाई की कमी के कारण इनके बेटे की कम उम्र में ही मृत्यु हो गई। इस घटना ने इनके जीवन को बदलकर रख दिया और इन्हें दवाओं पर शोध करने के लिए प्रेरित किया। इन्होंने वुमंस मेडिकल कॉलेज, पेंसिलवेनिया से पढ़ाई की। भारत लौटने के बाद इन्होंने चिकित्सा विज्ञान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किया। जीवन में तमाम मुश्किलों के बावजूद उनका हौसला कभी डिगा नहीं। पर 26 फरवरी 1887 में महज 22 साल की उम्र में बीमारी के चलते इनका निधन हो गया।

जानकी अम्मल

4 नवंबर 1897 को केरल में जन्मी जानकी अम्मल एक साइटोजेनेटिकिस्ट और वनस्पतिशास्त्र की वैज्ञानिक थीं। इन्होंने समाज द्वारा लगाए गए रूढ़िवादी नियमों को तोड़कर हजारों पौधों की प्रजातियों के गुणसूत्रों पर व्यापक अध्ययन व शोध करने में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इन्होंने गन्नों की हाइब्रिड प्रजाति की खोज की और क्रॉस ब्रीडिंग पर शोध किया था जिसे पूरी दुनिया में मान्यता मिली। इन्होंने ही चीनी को मीठा बनाने का कारण खोजा था। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए साल 1957 में इन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 7 फरवरी, 1984 को इनका निधन हो गया।

कमल रणदिवे

]जीव वैज्ञानिक कमल रणदिवे का जन्म 15 दिसंबर 1905 को हुआ था। इनका मूल नाम कमल समर्थ था। इनको विज्ञान के प्रति लगाव पुणे के विख्यात फर्ग्युसन कॉलेज में अपने प्रोफेसर पिता से विरासत में मिला था। देश में कैंसर के उपचार की व्यवस्था को शुरू करने में इनका अहम योगदान माना जाता है। अमेरिका के प्रतिष्ठित जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद वह भारतीय कैंसर शोध केंद्र से जुड़ गईं, जहां उन्होंने कोशिका कल्चर का अध्ययन किया। चूहों पर प्रयोग से उन्होंने उनकी एक ऐसी कैंसर प्रतिरोधी किस्म विकसित की। जिससे इन्हें कुष्ठ रोग का टीका विकसित करने की दिशा में कुछ अहम सुराग मिले। कुष्ठ रोग निवारण के क्षेत्र में काम के लिए ही इन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। कमल रणदिवे का योगदान केवल शोध और अनुसंधान तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की स्थापना भी की, जिसने आने वाली पीढ़ी की महिलाओं में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार कर उन्हें इस क्षेत्र से जुड़ने के लिए अभिप्रेरित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 11 अगस्त 1970 को इनकी जीवनलीला समाप्त हो गई।

असीमा चटर्जी

कैंसर चिकित्सा, मिर्गी और मलेरिया रोधी दवाओं के विकास के लिये प्रसिद्ध असीमा चटर्जी का जन्म 23 सितंबर 1917 को बंगाल में हुआ था। ये पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि दी गई थी। 2006 में 90 साल की उम्र में इन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

अन्ना मणि

मौसम वैज्ञानिक के तौर पर मशहूर अन्ना मणि का जन्म 23 अगस्त 1918 को केरल के त्रावणकोर में हुआ था। उस समय महिलाओं को विज्ञान पढ़ने या तथाकथित सामाजिक नियमों को तोड़ने की अनुमति नहीं थी। वह इन सभी नियमों को धता बताते हुए आगे बढ़ी और मौसम विज्ञान में अपना शोध शुरू किया। इन्होंने सौर विकिरण, ओजोन परत और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। वह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की उप निदेशक बनीं। 16 अगस्त 2001 को इनका देहांत हो गया।

डॉ. दर्शन रंगनाथन

4 जून 1941 को जन्मीं दर्शन रंगनाथन ने जैव रसायन यानी बायो-केमिस्ट्री क्षेत्र में अहम योगदान दिया। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में व्याख्याता रहीं और रॉयल कमीशन फॉर द एक्जिबिशन से छात्रवृत्ति मिलने के बाद शोध के लिए अमेरिका गईं। भारत लौटकर उन्होंने सुब्रमण्या रंगनाथन से विवाह किया, जो आईआईटी, कानपुर में पढ़ाते थे। उन्होंने आईआईटी, कानपुर में ही अपने शोधकार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। लेकिन, तमाम गतिरोधों के कारण सफल नहीं हो सकीं। फिर भी, ये गतिरोध उन्हें प्रोटीन फोल्डिंग जैसे महत्वपूर्ण विषय में शोध करने से नहीं रोक सके। वह ‘करंट हाईलाइट्स इन ऑर्गेनिक केमिस्ट्री’ नामक शोध पत्रिका के संपादन कार्य से भी जुड़ी रहीं। वह राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की फेलो भी रहीं। साथ ही, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, हैदराबाद की निदेशक भी रहीं। वर्ष 2001 में अपने जन्मदिवस के दिन ही उनका निधन हो गया।

रितु करिधल

भारत की रॉकेट महिला के रूप में मशहूर हो चुकी एयरोस्पेस इंजीनियर रितु करिधल मंगलयान प्रोजेक्ट की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रह चुकी हैं। ये भारत के सबसे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर थीं। इन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री ली और 1997 से इसरो से जुड़ गई। साल 2007 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने इन्हें इसरो के यंग साइंटिस्ट ऑवार्ड से सम्मानित किया गया।

मुथैया वनिता 

यह इसरो के इतिहास में पहला मौका था जब सबसे महत्वपूर्ण अंतग्रहीय मिशन का जिम्मा एक महिला वैज्ञानिक को दिया गया। बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर मुथैया वनिता ने चंद्रयान-2 की योजना, प्रक्षेपण से लेकर लैंडिंग तक पूरी प्रकिया का नेतृत्व किया। इन्होंने मैपिंग के लिये इस्तेमाल होने वाले पहले भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह कार्टोसैट-1 और दूसरे महासागर अनुप्रयोग उपग्रह ओशनसैट-2 मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साल 2006 में ऐस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘नेचर’ ने इनका नाम 2019 की पाँच सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक की श्रेणी में रखा।

शकुंतला देवी

इनको भारत के मानव कंप्यूटर के रूप में जाना जाता है। इनमें कुछ ही सेकंड में जटिल से जटिल गणितीय ऑपरेशन करने की उल्लेखनीय शक्ति थी। शकुंतला देवी के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी। फिर भी वह 6 वर्ष की आयु से ही अपनी गणितीय क्षमताओं का प्रदर्शन करती रही। इन्होंने एक बार 201 अंकों वाली एक संख्या के 23 वें मूल की गणना की। इन्होंने इसे मानसिक रूप से बिना किसी उपकरण या कलम का उपयोग किए किया और यह कार्य इन्होंने 1977 के सबसे तेज कंप्यूटर UNIVAC से 12 सेकंड तेजी से किया।

टेसी थॉमस

1963 में जन्मी, इन्होंने मानक सामाजिक नियमों को तोड़ा और एक भारतीय मिसाइल परियोजना का नेतृत्व करने वाली अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक बन गईं। कल्पना कीजिए कि कैसे वह रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) के एक पुरुष प्रधान वैज्ञानिक क्षेत्र में एक शानदार योगदानकर्ता बनने में कामयाब रही। वह इस तरह की एक महत्वपूर्ण परियोजना का नेतृत्व करने वाली पहली भारतीय वैज्ञानिक थीं, जिसने अब हमारे पास सैन्य शक्ति के स्तर को बढ़ा दिया है। वह अग्नि IV और V मिसाइलों के विकास के लिए परियोजना निदेशक बनीं। यह एक ठोस ईंधन वाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता 5,500 किलोमीटर होती है।

कल्पना चावला

भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के बारे में छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई जानता है। कल्पना एक एरोनॉटिकल इंजीनियर थी और अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला। वह 376 घंटे 34 मिनट तक अंतरिक्ष में रहीं। इस दौरान उन्होंने धरती के 252 चक्कर लगाए थे। 1 फरवरी 2003 को हुई अंतरिक्ष इतिहास की एक मनहूस दुर्घटना में कल्पना चावला सहित सातों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई।

सुनीता विलियम्स

सुनीता विलियम्स अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जरिये अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं। सुनीता विलियम्स ने एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में 195 दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

ये सभी भारतीय मूल के नाम है और इस बात के प्रमाण हैं कि भारतीय महिलाओं ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी प्रकार पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया और अपने कार्य से अपनी एक अलग पहचान बनाई व पत्रकारिता को एक नई दिशा दी।

आज से कुछ वर्ष पहले तक मीडिया में महिलाओं के कुछ गिने-चुने नाम ही मुश्किल से याद आते हैं, क्योंकि मीडिया इंडस्ट्री में महिला पत्रकारों के सामने कई प्रकार की चुनौतियां रहीं है, क्योकि इस पुरुष प्रधान पेशे में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा। महिलाओं की प्रताड़ना, शोषण, अत्याचार के कई प्रकरण है जिसकी वजह से महिलाएं इस पेशे में आने से कतराती थी। महिलाओं का इस क्षेत्र में न कार्य न करने का एक कारण रात के समय कार्य करना भी रहा। पर आज मीडिया-जगत का ऐसा कोई कोना नहीं जहाँ महिलाएँ आत्मविश्वास और दक्षता से मोर्चा नहीं संभाल रही हो। विगत वर्षों में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट पत्रकारिता की दुनिया में महिला स्वर प्रखरता से उभर रहा है।

इस जगमगाहट का एक अहम कारण यह है कि पत्रकारिता के लिए जिस वांछित संवेदनशीलता की जरुरत होती है वह महिलाओं में नैसर्गिक रूप से पाई जाती है। पत्रकारिता में एक विशिष्ट किस्म की संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है और समानांतर रूप से कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करने की भी। संवाद और संवेदना के सुनियोजित सम्मिश्रण का नाम ही सुन्दर पत्रकारिता है। महिलाओं में संवाद के स्तर पर स्वयं को अभिव्यक्त करने का गुण भी पुरुषों की तुलना में अधिक बेहतर होता है। यही वजह रही है कि मीडिया में महिलाओं का गरिमामयी वर्चस्व बढ़ा है।

संवेदना के स्तर पर जब तक वंचितों की आह, पुकार और जरुरत एक पत्रकार को विचलित नहीं करती उसकी लेखनी में गहनता नहीं आ सकती। लेकिन महज संवेदनशील होकर पत्रकारिता नहीं की जा सकती क्योंकि इससे भी अधिक अहम है उस आह या पुकार को दृढ़तापूर्वक एक मंच प्रदान करना। यहाँ जिस सुयोग्य संतुलन की दरकार है वह भी नि:संदेह महिलाओं में निहित होती है, जिसे वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं। इसके साथ ही पत्रकार में गहन अवलोकन क्षमता और पैनी दृष्टि होनी चाहिए, जोकि महिलाओं में कूट-कूट कर भरी होती है। क्योंकि, जिस बारीकी से वह बाल की खाल निकाल सकती है वह सिर्फ उन्हीं के बस की बात है। महिला पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान करने वाली ऐसी ही कुछ चुनिंदा महिला पत्रकारों के नाम इस प्रकार है –

विद्या मुंशी

विद्या मुंशी को भारत की पहली महिला पत्रकार माना जाता है। मुंबई में जन्मी विद्या ने अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया। 1952-62 के बीच वे रूसी करंजिया के चर्चित अखबार ब्लिट्ज़ की कलकत्ता संवाददाता रहीं। उन्होंने उस वक्त सरकार की नीतियों पर प्रभावी लेखन किया। खोजी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने स्मगलिंग, अवैध उत्खनन के कई स्कूप उजागर किए।

विमला पाटिल

भारतीय महिला पत्रकारों में इनका नाम सम्मान से लिया जाता है। संभवतः ये पहली महिला थी जिन्होंने द टेलीग्राफ से जुड़कर लेखिका, स्तंभकार और पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया। 1959 से 1993 तक वे लगातार संपादक और महत्वपूर्ण पदों पर रहीं। उन्होंने टाइम्स ग्रुप की पत्रिका फेमिना को भी एक ब्रांड के तौर पर स्थापित किया।

प्रभा दत्त

ये 1965 के भारत-पाक यद्ध में कवरेज करने वाली प्रथम महिला थी। ये अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के लिए कार्य करती थी। इनकी बेटी बरखा दत्त आज के समय की एक जानी मानी एनडीटीवी चैनल रिपोर्टर व एंकर है, जोकि कारगिल युद्ध की कवरेज करने के लिए बहुत प्रसिद्ध हुई।

नीरजा चौधरी

ये आज भी महिला पत्रकारिता में एक मिसाल के तौर पर कार्य कर रही हैं। इन्होंने 60 के दशक में मुंबई के हिम्मत अखबार से अपनी यात्रा शुरू की। इन्होंने स्वयं को एक राजनैतिक पत्रकार के तौर पर स्थापित किया। ये आज दिल्ली में स्थित महिलाओं के प्रेस क्लब से जुड़ी है। देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख छपते है।

मृणाल पाण्डे

इन्होंने उस वक्त सम्पादक की कुर्सी सम्भाली जब इस पेशे में महिलाओं का औसत बिल्कुल नगण्य था। इन्होंने उस वक्त के प्रतिष्ठित दैनिक व साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदुस्तान के संपादकीय दायित्व को निभाया। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई कीर्तिमान रचे। ये 2008 में पीटीआई बोर्ड की सदस्य बनी और बाद में प्रसार भारती की चैयरपर्सन भी रहीं।

चित्रा सुब्रमण्यम

ये एक प्रभावशाली व्यक्तित्व है जिन्होंने अपनी खोजी पत्रकारिता से पत्रकारिता में महिला प्रभुत्व को स्थापित कर दिया। चित्रा सुब्रमण्यम ने जनसंचार में डिग्री-डिप्लोमा हासिल कर इंडिया टुडे में कार्य किया। द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, स्टेट्समैन से जुड़कर इन्होंने बोफोर्स कांड (तोपों की खरीदी में अवैध तरीके से भुगतान का मामला) को उजागर किया। यह भारतीय राजनीति का चर्चित स्कैण्डल रहा।

मधु त्रेहान

ये भारत की प्रख्यात महिला पत्रकार हैं जिन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री लेने के बाद 1975 में इंडिया टुडे के अंग्रेजी संस्करण की नींव रखी। वे इसकी संस्थापक संपादक रही। 1986 में इन्होंने न्यूट्रेक नाम की पहली वीडियो मैगज़ीन की शुरुआत कर पत्रकारिता के क्षेत्र में तहलका मचा दिया। वे आज भी आउटलुक, हिंदुस्तान टाइम्स सहित अन्य स्थानों पर सक्रिय लेखन कर रही है।

इसके अतिरिक्त मालिनी पार्थसारथी द हिन्दू की मुख्य संपादक रही, आरती जेरथ टाइम्स ऑफ इंडिया में महत्वपूर्ण पद पर रहीं। कादंबरी मुरली स्पोर्ट्स इलेस्ट्रेट में खेल संपादक के तौर पर तो शोभा चौधरी तहलका की प्रबंध संपादक का दायित्व संभालती है। शोभा डे, वर्तिका नंदा, शारदा उगरा, सागरिका घोष, भाषा सिंह, क्षिप्रा माथुर, स्मिता मिश्र, उपमिता वाजपेयी जैसी महिलाएं पत्रकारिता के मोर्चे पर डटीं हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नीलम शर्मा, निधि कुलपति, ऋचा अनिरुद्ध, मीमांसा मालिक, अनुराधा प्रसाद, श्वेता सिंह, अंजना ओम कश्यप, नेहा पंत, कादम्बिनी शर्मा सहित अनेकों नाम है, जिन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी है।

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