मध्य प्रदेश की बिजली कंपनियों में घर-परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर कार्यरत मैदानी विद्युत कर्मियों का दर्द हर त्यौहार और विशेष अवसरों पर उभर आता है। परिवार होने के बाद भी ये कर्मी उनके बिना अकेले रहने को विवश हैं। लेकिन ये दर्द मुख्यालय की ऊँची कुर्सी पर बैठे साहब शायद ही समझ पायें, क्योंकि उन्हें तो सब कुछ आसान नजर आता है। क्योंकि अफसर न तो कभी जेठ की अंगारों जैसी धूप में भभकते ट्रांसफार्मर के ऊपर चढ़े हैं और न ही भयावह बारिश में पोल पर चढ़कर करंट का कार्य किया है। ये दर्द तो वही कर्मी जान सकता है, जो इसे भुगत रहा है।
खासतौर पर विभिन्न कंपनियों में पदस्थ नियमित और संविदा कर्मी, चाहे वो लाइनमैन और या आफिस स्टॉफ का सदस्य, अपने घर-परिवार से दूर नौकरी करने को मजबूर है। ऐसा नहीं की विद्युत विभाग में ट्रांसफर नहीं होते। विद्युत कंपनियों में भी ट्रांसफर होते हैं, लेकिन इसका लाभ नियमित और संविदा मैदानी कर्मियों को नहीं मिल पाता, विशेष कर जो कर्मी एक कंपनी से दूसरी कंपनी में अपना ट्रांसफर किये जाने की उम्मीद किये बैठे हैं।
वहीं घर-परिवार से दूर अकेले रहने वाले नियमित और संविदा कर्मियों को इतना वेतन भी नहीं मिलता कि वे बार-बार लंबी यात्राओं का खर्च वहन कर सकें। उनकी तो ज्यादातर सैलरी किराये-भाड़े और भोजन की व्यवस्था में ही खर्च हो जाती है। अगर कर्मी यात्रा का खर्च उठा भी ले तो उसे अवकाश ही नहीं दिया जाता, जिससे वो घर जाकर अपने परिजनों के साथ कुछ समय बिता सकें। साथ ही अनेक कर्मी ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ रहकर उनकी सेवा नहीं कर पाने का मलाल है।
अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुये अधिकांश नियमित और संविदा कर्मियों का यही कहना है कि अगर उनकी गृह नगर या आसपास नियुक्ति हो जाये तो भी परिजनों के साथ कुछ समय बिता सकें, उनके साथ रह सकें। कर्मियों का कहना है कि लंबे अर्से से की जा रही इस भी मांग को पूरी करने में सरकार पर किसी प्रकार का आर्थिक भार भी नहीं आएगा और कर्मी अपने व्यय पर स्थानांतरण के लिए तैयार हैं। कर्मियों का कहना है कि उन्हें भी कंपनी टू कंपनी स्थानांतरण की सुविधा मिलनी चाहिए।