कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है, इसी तरह सरकारी कर्मचारियों को पेंशन का सहारा होता है। अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय शासकीय सेवा में बिताने के बाद कर्मचारी सोचता है कि सेवानिवृत्ति के पश्चात पेंशन के सहारे बाकी का जीवन सुखमय बिता सकूँगा, लेकिन असंवेदनशील हो चुकी व्यवस्था उसके सपनों पर कुठाराघात कर देती है।
कर्मचारी के सेवानिवृत्त होते ही व्यवस्था की पोल खुलने लगती है और कर्मचारी के साथ वर्षों काम करने वाले साथी कर्मचारी भी पराया व्यवहार करने लगते हैं। खासतौर पर मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में इतनी भर्राशाही व्याप्त है कि विद्युत अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सेवानिवृत्त होने के बाद महीनों और कई बार तो सालों-साल तक पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सबसे ज्यादा विडंबना इस बात की है कि अधिकारी या कर्मचारी की मृत्यु के पश्चात उनके परिजनों को फैमिली पेंशन के लिए महीनों-सालों भटकाया जाता है। जिम्मेदार अधिकारियों में इतनी भी मानवीयता नहीं बची है कि वे मृत कर्मियों के परिजनों की आर्थिक परेशानी को समझ भी सकें।
ताज़ा उदाहरण पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अंतर्गत जबलपुर रीजन के तत्कालीन मुख्य अभियंता प्रकाश दुबे का है, जिनका निधन हुए 6 महीने पूरे हो चुके हैं। लेकिन उनके परिजनों को भी फैमिली पेंशन और अन्य लाभ पाने के लिए भटकना पड़ रहा है। जब एक उच्च अधिकारी के परिजनों को इतनी परेशानी उठानी पड़ रही है तो, छोटे कर्मचारी के परिजनों को अधिकारी किस कदर परेशान करते होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
मप्रविमं तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रान्तीय महासचिव हरेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि मप्र राज्य विद्युत मण्डल की सभी उत्तरवर्ती कम्पनियों में अभी भी हजारों की संख्या में नियमित कर्मचारी और अधिकारी पदस्थ हैं, जो आगामी दो-तीन वर्षों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
उन्होंने बताया कि विगत कुछ महीनों में सेवानिवृत्त हुए अनेक अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अभी तक पेंशन का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जिससे उनके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। हरेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि खासतौर पर नौकरी के दौरान मृत हुए अधिकारी-कर्मचारी के परिजन फैमिली पेंशन के लिये महीनों भटकते हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इतने अमानवीय और असहिष्णु हो चुके हैं कि वे इस बारे में असहयोगात्मक रुख अपनाये हुए हैं।