मध्य प्रदेश के शासकीय कर्मचारी आज भी केंद्रीय कर्मचारियों से 16 साल पीछे चल हैं, जिससे उन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। बताया जा रहा है की एमपी सरकार द्वारा राज्य के कर्मचारियों को 1 जनवरी 2016 तथा अध्यापक संवर्ग को 1 जुलाई 2018 से सातवां वेतनमान का लाभ दिया जा रहा है। किन्तु राज्य शासन द्वारा उन्हें छटवें वेतनमान के अनुसार 16 वर्ष पुरानी दरों से मकान भाडा भत्ता, परिवहन भत्ता, विकलांग भत्ता, आदिवासी क्षेत्र भत्ता एवं यात्रा भत्ता दिया जा हैं।
ये भी पढ़ें: एमपी में पदोन्नति के नाम पर लोक सेवकों को उच्च पद का झुनझुना पकड़ा रही सरकार
ये भी पढ़ें: राज्य स्तरीय रोजगार दिवस का आयोजन करेगी एमपी सरकार
मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ योगेन्द्र दुबे ने बताया कि कर्मचारियों का ऐसा मानना है सातवें वेतनमान के अनुरूप भत्तों में बढोतरी न होने सातवें वेतनमान का वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रह है। शासन द्वारा राज्य कर्मचारियों के साथ सातवें वेतनमान के अनुसार भत्ते देने में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, शासन के दोहरे मापदंड से राज्य कर्मचारियों में भारी निराशा एवं आक्रोश व्याप्त है।
संघ योगेन्द्र दुबे, अर्वेन्द्र राजपूत, अवधेश तिवारी, अटल उपाध्याय, मुकेश सिंह, मंसूर बेग, आलोक अग्निहोत्री, मनोज सेन, आशुतोष तिवारी, दुर्गेश पाण्डे, सुरेन्द्र जैन, डॉ संदीप नेमा, संतकुमार छीपा, श्रीराम झारिया, देवेन्द्र प्रताप सिंह, श्यामनारायण तिवारी, मो. तारिक, सुनील राय, राजकुमार सिंह, अभिषेक मिश्रा, सोनल दुबे, देवदत्त शुक्ला, पवन ताम्रकार, विनय नामदेव, संतोष तिवारी, महेश कोरी, मनीष लोहिया, मनीष शुक्ला, प्रियांशु शुक्ला, बृजेश गोस्वामी, सतीश पटैल, प्रशांत शुक्ला, धीरेन्द्र सोनी आदि ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की है कि राज्य कर्मचारियों को सातवें वेतनमान के अनुसार ही भत्ते दिये जावें।