वर्षों से लंबित मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन कामबंद हड़ताल करने वाले मध्य प्रदेश के बिजली कर्मियों पर कंपनी प्रबंधन ने कार्यवाही का चाबुक चलाना शुरू कर दिया है, एक ओर जहां प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों को हड़ताल के दौरान ही नौकरी से पृथक कर दिया गया था, वहीं अब उन्हें ब्लैक लिस्टेड किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कंपनी में कार्यरत संविदा कर्मियों पर भी दमनात्मक कार्यवाही की जा रही है और इन कर्मचारियों को सेवा समाप्ति का नोटिस दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि 21 जनवरी से शुरू हुए बिजली कर्मियों के कार्य बहिष्कार आंदोलन को इंदौर सांसद और ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के आश्वासन के बाद 25 जनवरी खत्म कर दिया गया था और आंदोलन में शामिल सभी संगठनों के सदस्य नौकरी पर लौट आए थे और कार्य भी शुरू कर दिया था, लेकिन आंदोलन के दौरान मुखर रहे संविदा एवं आउटसोर्स कर्मचारियों पर अधिकारियों द्वारा दमनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है।
विद्युत सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों से नियम विरुद्ध जोखिम का कार्य कराने वाले अधिकारी अब नियम-कायदों का हवाला देते हुए नोटिस जारी कर रहे हैं। कभी इन कर्मचारियों से जोखिम का कार्य कराते समय, जो अधिकारी नियमों को दरकिनार कर देते थे, उन्हीं अधिकारियों को अब नियम याद आ रहे हैं और नियम-कायदा तोडऩे के आरोप मे कर्मचारियों को धडल्ले से नोटिस जारी किये जा रहे हैं।
वहीं आउटसोर्स कर्मियों को नौकरी से पृथक करते हुए बिजली कंपनियों के अधिकारी ये तक भूल गए कि विपरीत परिस्थितियों ने इन्हीं कर्मचारियों ने अपनी जान को जोखिम में डालकर नियम विरुद्ध करंट का कार्य कर प्रदेश को रौशन किया, लेकिन आज इन सब बातों को भूलकर प्रदेश के लगभग 920 आउटसोर्स कर्मियों को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में अपने अधिकार के लिए लडऩे वाले इन संविदा और आउटसोर्स कर्मियों पर कठोर कार्यवाही करने वाले असंवेदनशील अधिकारियों को इनके परिवार और छोटे बच्चों का भी ध्यान नहीं आया, जो आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं।