मप्र के जबलपुर स्थित प्रगत शैक्षिक अध्ययन संस्थान पीएसएम में B.Ed चतुर्थ श्रेणी के ‘अ’ वर्ग (अरावली सदन) सेक्शन की कक्षा शिक्षिका श्रीमति सुनीता जैन द्वारा उनकी कक्षा के 3 शिक्षक, जिनका कोरोना काल के दौरान आकस्मिक निधन हो गया था, उन्हें भी 16 अप्रैल से 15 मई 2021 तक ऑनलाइन कक्षा में उपस्थिति का प्रमाण पत्र प्रदान कर दिया गया।
मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के योगेंद्र दुबे ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि संस्था के प्रचार्य व कक्षा शिक्षिका द्वारा प्रमाणित किया गया कि यह सभी शिक्षक ऑनलाइन कक्षा में मौजूद रहे। जिसके आधार पर सभी अध्यापकों का वेतनपत्र जारी कर दिया गया, जबकि विषय शिक्षकों की आनलाईन उपस्थिति के आधार पर उपस्थिति पत्रक तैयार करने के नियम है।
इस मामले में लापरवाही की हद तो तब हो गई जब एक नहीं 3-3 शिक्षक अध्यापको की मृत्यु होने के बाद भी उनको उपस्थिति प्रमाण पत्र प्रदान किया, जबकि तीनों अध्यापक निधन के पूर्व अस्वस्थ भी रहे होंगे। चिकित्सा सुविधा भी दी गई होगी तथा अस्पताल में भर्ती हुए होंगे, उसके बाद ही कोरोना काल में मृत्यु हुई होगी।
कॉलेज प्रबंधन की लापरवाही
यह सत्य है कि उनके द्वारा छात्रों का हालचाल जानना भी उचित नहीं समझा गया था, क्योंकि ऑनलाइन कक्षाओं का विधिवत रिकॉर्ड होता है तथा ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थिति के आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अध्यापकों को वेतन व अवकाश के साथ साथ आंतरिक मूल्यांकन में अंक प्रदान किए जाते हैं। उसके बाद भी कक्षा शिक्षिका व प्राचार्य की मिलिभगत व लापरवाही से उपस्थिति पत्रक पूरे माह के साथ पिछले अवकाश का कोई विवरण दिये बिना जारी कर मृत शिक्षकों को भी उपस्थिति प्रदान की कर दी गई।
सरल क्रमांक 42 धनपत सिंह, सरल क्रमांक 44 दुर्गा विसेन, सरल क्रमांक 50 गंगाराम रजक पर इनके नाम अंकित हैं। जिनके मृत्यु प्रमाण पत्र संलग्न हैं, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कक्षा शिक्षिका द्वारा जानकारी ही नहीं ली जाती कि कौन शिक्षक कक्षा अटेंड कर रहा है या नहीं। आंख बंद करके पूरे माह की उपस्थिति प्रदान कर दी जाती है।
अध्यापकों की कोरोना के दौरान मृत्यु नहीं हुई होती तो पता भी नहीं चलता कि इतने बड़े महाविद्यालय में उपस्थिति का ऐसा खेल खेला जा रहा है कि मृतक उनको भी अभी ऑनलाइन कक्षा की पूरे मांह की उपस्थिति दी जा रही है। कई तो ऐसे हैं जिन्हे मृत हुए भी 1 माह हो गया है, उन्हे भी उपस्थित मान लिया गया, जबकि प्राचार्य स्वयं महाविद्यालय में वर्षो से हस्ताक्षर नहीं करते, हमेशा भोपाल, हरिद्वार घूमते रहते हैं। दोषियों को निलंबित कर इन समस्त बिंदुओं की जांच की जाये और गंभीर अनियमितता पाए जाने पर दंडित किया जाए।