जबलपुर (हि.स.)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल गैस पीड़ितों के इलाज में लापरवाही मामले में दोषी अधिकारियों की सजा के फैसले को फिलहाल रोक दिया है। अब पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई के बाद सजा पर निर्णय लिया जाएगा। अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी। दरअसल, अवमानना के दोषी अधिकारियों ने हाई कोर्ट में पुनर्विचार आवेदन लगाया था, जिस पर बुधवार को उच्च न्यायालय की युगलपीठ में सुनवाई हुई।
दरअसल, मप्र उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के नौ उच्च अधिकारियों को गैस पीड़ितों को सही इलाज एवं शोध व्यवस्था प्रदान नहीं कर पाने और सुप्रीम कोर्ट के भोपाल गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य के मामले में नौ अगस्त 2012 के आदेश की लगातार अवमानना का दोषी पाया गया था। उच्च न्यायालय के जस्टिस शील नागू और जस्टिस देवनारायण मिश्रा ने युगलपीठ द्वारा 20 दिसंबर को उक्त आदेश जारी किया गया था, जिसमें इन अधिकारियों को 16 जनवरी तक जवाब देने को कहा गया था। साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाने एवं न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा-2 के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई करते हुए बुधवार को तय की थी, लेकिन अवमानना के दोषी अधिकारियों ने हाई कोर्ट में पुनर्विचार का आवेदन लगाया, जिसके बाद हाई कोर्ट ने फिलहाल सजा पर फैसले को स्थगित करते हुए 19 फरवरी को अगली सुनवाई तय की है।
इन अधिकारियों को पाया दोषी
उच्च न्यायालय ने जिन अधिकारियों को दोषी पाया है, उनमें केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के पूर्व सचिव राजेश भूषण, केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की पूर्व सचिव आरती आहूजा, भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर की पूर्व डायरेक्टर डॉ. प्रभा देसिकान, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एन्वायरमेंटल हेल्थ, आईसीएमआरएस संचालक डॉ. आरआर तिवारी, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान, आईएनसी के राज्य सूचना अधिकारी अमर कुमार सिन्हा, आईएनसीएसआई विनोद कुमार विश्वकर्मा, आईसीएमआर की पूर्व सीनियर डिप्टी संचालक आर रामा कृष्णन शामिल हैं।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दो-तीन दिसंबर 1984 की रात में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था,जिसमें हजारों लोगों की मौत और लाखों लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। इस गैस त्रासदी का दंश लोग आज भी झेलने को मजबूर हैं। गैस पीड़ित सरकारों से लेकर न्यायालयों के चक्कर काट-काट कर थक गए हैं, लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिल पाया है।