केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश की विद्युत वितरण कंपनियों को निजी हाथों में सौपने हेतु 20 सितंबर को स्टेन्डर्ड बिड डाक्यूमेंट जारी किया गया है एवं उसमें सभी प्रदेशों से 5 अक्टूबर तक कमेंट मांगे गये है, जो कि भारत शासन की इस कोरोना काल में वितरण कंपनियों को निजी हाथों में औने-पौने दामों में बेचने की साजिश है।
जिससे आम विद्युत उपभोक्ता एवं आम जनता, अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा एवं शासन इस संबंध में अधिकारी एवं कर्मचारी संगठनों से चर्चा करने हेतु भी तैयार नही है।
निजीकरण करने से आम उपभोक्ताओं की बिजली महंगी होगी, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के भविष्य यथा पेंशन, अन्य भत्तें एवं कंपनी केडर के अधिकारियों एवं कर्मचायरियों की सेवा शर्तो में बदलाव एवं संविदा कर्मचारियों को निकालने की नौबत भी आ सकती है।
अत: सभी अधिकारी एवं कर्मचारी चाहे वह किसी भी वर्ग या संवर्ग के हो उन्हे इस विरोध आंदोलन में शामिल होना चाहिये, जिससे हम अपने भविष्य को सुनक्षित बना सके।
मध्यप्रदेश में भी शासन के इस विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण के जनविरोधी कदम का का विरोध करने हेतु 1 अक्टूबर को भोपाल, जबलपुर एवं इंदौर में सभी संगठनों की एक आपात कालीन बैठक कर रणनिति तैयार की जायेगी।
यूनाइटेड फोरम सभी संगठनों के पदोधिकारियों से अनुरोध करता है कि पावर सेक्टर एवं कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखकर दिनांक 1 अक्टूबर को बैठक में भाग लेकर अगली रणनीति के संबंध में विचार व्यक्त करे, जिससे उत्तरप्रदेश की तरह हम सभी मिलकर अपनी एकता प्रदर्शित कर सकें।
एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई. के आव्हान पर 5 को पूरे प्रदेश में विरोध दिवस मनाया जायेगा। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री एवं ऊर्जा मंत्री से अनुरोध है कि निजीकरण के मुद्दे पर सभी हितधारिको से तुरंत चर्चा करें।