मध्य प्रदेश की विद्युत कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों से बिना कोई नीति बनाये विद्युत लाइनों में करंट का जोखिमपूर्ण कार्य कराया जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं एक तरफ आउटसोर्स कर्मियों की सेवाएं अतिआवश्यक घोषित करने से उनपर काम का बेजा दबाव है, वहीं दूसरी ओर अनहोनी होने पर इसकी जिम्मेदारी न तो विद्युत कंपनी लेने को तैयार होती है और न ठेका कंपनी किसी प्रकार की कोई सहायता देती है।
मप्रविमं तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को पत्र लिखकर पूछा है कि विद्युत मण्डल की सभी उत्तरवर्ती विद्युत कंपनियों में ठेकेदारों के द्वारा आउटसोर्स कर्मी उपलब्ध कराकर, वर्ष 2002 से उनकी सेवाएं अति आवश्यक घोषित कर जोखिम पूर्ण कार्य कराए जा रहे हैं। इस दौरान करंट लगने या किसी दुर्घटना में घायल होने, मृत्यु होने या विकलांगता होने पर उनके भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये आपके द्वारा क्या मानव संसाधन नीति बनाई गई है?
साथ ही उन्होंने कहा कि कंपनी प्रबंधकों के द्वारा श्रम नियमों का उल्लंघन एवं मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है। वहीं मैदानी अधिकारी 24 घंटे नौकरी कराकर मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं। उन्होंने ऊर्जा मंत्री से मांग की है कि आउटसोर्स कर्मियों के लिये सरकार द्वारा जो नीति बनाई गई है, उसकी छायाप्रति संघ को उपलब्ध कराएं।
हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि जब प्रदेश की विद्युत कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों की सेवाएं अतिआवश्यक घोषित कर उनसे जोखिमपूर्ण कार्य कराए जा रहे हैं, तो फिर उनके संविलियन से गुरेज क्यों किया जा रहा है। जबकि विद्युत कंपनियों में नियमित कर्मियों की खासी कमी है। ऐसे में अनुभवी हो चुके आउटसोर्स कर्मियों का संविलियन कर इस कमी को तत्काल पूरा किया जा सकता है।