मध्य प्रदेश में डीए और वेतन वृद्धि के एरियर्स की मांग पर कार्य बहिष्कार हड़ताल पर गए विद्युत कंपनियों के अधिकारी एवं कर्मचारी मांग पूरी होते ही काम पर लौट आए हैं। ये समय पांच दिवसीय दीपोत्सव का है, रोशनी के पर्व का है। ऐसे में सरकार चाहती है कि किसी के घर में अंधेरा न हो, इसलिए बिजली कार्मिकों की सभी मांगें मान ली गई हैं, इनमें से कितनी पूरी होगी ये समय बतलायेगा।
बहरहाल सरकार की मंशा के अनुसार आश्वासन मिलने के बाद काम लौटे विद्युत अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने सब घरों में उजाला बरकरार रखने की जिम्मेदारी संभाल ली है और इसके लिए सभी मैदानी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है। लेकिन क्या सरकार वाकई जमीनी हकीकत से वाकिफ़ है। अगर सरकार जमीनी हकीकत से वाकिफ होती तो संविदा कर्मचारियों को नियमित करने और आउटसोर्स कर्मियों का विद्युत कंपनियों में संविलियन करने में तनिक भी देरी नहीं करती।
एक छोटा सा उदाहरण विद्युत कंपनियों के मुख्यालय जबलपुर का ही सामने है। जहां जबलपुर सिटी सर्किल में नियमित मैदानी कर्मचारियों की कमी इतनी विकट हो चुकी है कि दीपावली जैसे प्रमुख त्योहार में सभी ट्रांसफार्मर पर तैनाती के लिए मैदानी नियमित और संविदा कर्मचारी ही नहीं हैं, यहां भी विद्युत व्यवस्था संभालने के लिए अधिकारी आउटसोर्स कर्मियों पर ही निर्भर हैं।
मध्य प्रदेश विद्युत कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि जबलपुर सिटी सर्किल के पांचों संभाग में 3 लाख 38 हजार से ज्यादा विद्युत उपभोक्ता है, जिनके घरों और प्रतिष्ठानों में बिजली पहुंचाने के लिए सिटी सर्किल में 4577 ट्रांसफार्मर स्थापित किये गए हैं। उन्होंने बताया कि दीपावली पर प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर दो कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है, ताकि किसी भी प्रकार फाल्ट आने पर तत्काल सुधार कार्य किया जा सके और विद्युत आपूर्ति सुचारू रखी जा सके।
हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि वर्षों से नियमित कर्मचारियों की भर्ती नहीं होने से विद्युत कंपनी में तकनीकी कर्मचारियों की बेहद कमी हो चुकी है। ऐसे में जबलपुर सिटी सर्किल में स्थापित 4577 ट्रांसफार्मर पर तैनाती के लिए कर्मचारी ही नहीं हैं। वर्तमान में सिटी सर्किल में 296 नियमित और 322 संविदा कर्मी हैं, वहीं आउटसोर्स कर्मियों की संख्या सबसे अधिक 502 है। सबको मिलाकर कर भी प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर दो कर्मियों की तैनाती के लिए स्टाफ नहीं है। जिसके कारण दो कर्मियों पर 6 से 8 ट्रांसफार्मर की जिम्मेदारी डाल दी गई, जो कि व्याहारिक रूप से उचित नहीं है।
उनका कहना है कि जब नियमानुसार संविदा और आउटसोर्स कर्मियों को करंट का कार्य करने का अधिकार नहीं है, तो फिर इन कर्मचारियों की ट्रांसफार्मर पर ड्यूटी लगाना भी नियम विरुद्ध है। सरकार और कंपनी प्रबंधन को तत्काल निर्णय लेते हुए संविदा कर्मचारियों को नियमित करना चाहिए और आउटसोर्स कर्मियों का कंपनी में संविलियन करना चाहिए, जिससे इन्हें भी करंट का कार्य करने का अधिकार मिल सके और सभी कर्मचारी उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति में अपना योगदान दे सकें।
जबलपुर सिटी सर्किल तो एक छोटा सा उदाहरण है, पूरे मध्य प्रदेश की स्थिति क्या होगी, इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। नियमित कर्मियों की नगण्य संख्या, संविदा कर्मियों की कमी के चलते वास्तविक रूप से प्रदेश की विद्युत व्यवस्था को आउटसोर्स कर्मी ही संभाले हुए हैं। ठेका कंपनियों के प्रबंधकों के शोषण का शिकार और विद्युत कंपनियों की अनदेखी के चलते लाखों घरों को रोशन करने वाले आउटसोर्स कर्मी कुव्यवस्था और सौतेलेपन के अंधेरे में कार्य करने के लिए मजबूर हैं। सरकार और कंपनी प्रबंधन को अब इनकी भी सुध लेना चाहिए, ताकि इनके जीवन में भी उजाला हो सके।