मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि आदिवासी विकास विभाग जबलपुर अभी तक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की विनियमितीकरण की प्रक्रिया को लेकर कुम्भकर्णी नींद में सोया हुआ है। जहां प्रदेश के अन्य सभी जिलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की वर्ष 2017-18 तक विनियमितीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण कर लिया गया है, जबकि जबलपुर जिले के कर्मचारी आज जब वर्ष 2022 तब भी सिर्फ आश्वासनों का झूला झूलने मजबूर है। अन्य जिले के कर्मचारियों का वेतन जहां 18,000 के लगभग हो गया है, वहीं जबलपुर के आदिवासी विकास विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कलेक्टर दर पर मात्र 10,000 रूपये वेतन पर अपना जीवन यापन करने मजबूर हैं।
इस बात कई बार विभाग से कर जब पूछा जाता है तो वह एक रटा रटाया सा जवाब की फाईल बढ़ गई है, फाईल साहब की टेबिल में रखी है, कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। वर्ष 2016 से 2022 आ गया, लेकिन लगता है कि फाईल को लकवा मार गया है। वर्ष 2003 व 2005 से पदस्थ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी विनियमितीकरण की राह देखते-देखते थक गए हैं, अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त कर्मचारियों तक को उनका हक नहीं मिल पा रहा है, इस प्रकार की लापरवाही अन्यत्र किसी जिले में देखने को नहीं मिलेगी, लेकिन विभाग के आला अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगती। कई बार यह मामला मीडिया के माध्यम से अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया गया, लेकिन अधिकारियों का रवैया पूर्व की तरह आज भी उदासीन है।
संघ के योगेन्द्र दुबे, राम दुबे, मुन्ना यादव, चंदु जाउलकर, आलोक अग्निहोत्री, मंसूर बेग, शरफ ओहब, संजय उपाध्याय, उमेश पारखी, मस्तराम राय, मो. शकील, विट्टू अहलूवालिया, अजय श्रीवास्तव, जगत लाल झारिया, शंकर वानखेडे, आरके गुलाटी, अन्नु दुबे, श्रीचंन्द्र जैन, वीरेन्द्र आहिरवाल, अंकुर प्रताप सिंह, एसके प्रधान, श्रीमती रत्ना बोस, श्रीमती सुमन श्रीवास्तव, संजय अरसिया, अजय झामडे, विश्वामित्र चौबे आदि ने सहायक आयुक्त आदिवासी जिला जबलपुर से मांग की है कि आदिवासी विकास विभाग में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की विनियमितीकरण की प्रक्रिया 15 दिवस के अन्दर पूर्ण की जाये अन्यथा संघ तीव्र आन्दोलन हेतु बाध्य होगा।