मप्र विद्युत मंडल अभियंता संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश के विद्युत क्षेत्र की समस्याओं को संविदा तथा आउट सोर्स कर्मियों को नियमित कर काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा संघ ने कंपनियों की वित्तीय स्थिति और हर बात के लिये अभियंताओं को दोष देने की परिपाटी को लेकर भी चिंता जाहिर की है।
मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में अभियंता संघ ने कहा है कि विद्युत कंपनियों के साथ शासन एवं प्रशासन का दोयम दर्जे के व्यवहार का परिणाम उपभोक्ता झेलने को मजबूर है। जहां विद्युत पारेषण एवं उत्पादन कंपनियों के देयक निपटाने में अभूतपूर्व देरी की जा रही है, वहीं निजी विद्युुत उत्पादन कंपनियों को प्राथमिकता पर एडवांस भुगतान किया जा रहा है। लंबे समय से चल रहे इस दोयम व्यवहार से अब कंपनियों की वित्तीय स्थिति अत्यंत सोचनीय हो चुकी है।
वर्तमान में शासन द्वारा अपने हिस्से की सब्सिडी की देनदारी न चुकाने से देनदारी लगभग 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच रही है। इससे पूरा सिस्टम आपात वित्तीय स्थिति में है। इनके परिणामस्वरूप कार्मिकों के रिटायरमेंट लाभों का भुगतान भी काफी देर से किया जा रहा है, जिससे कार्मिकों में निराशा व्याप्त हो रही है।
वहीं कोयला कंपनियों की देनदारी भी लगभग 1200 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी है। ऐसी ही स्थिति रही तो रबी सीजन में विद्युत व्यवस्था पूर्णत: चरमरा सकती है, साथ ही कोयला कंपनियों का समुचित अवधि में भुगतान न होने से कोयले की प्रभावी दरें महंगी होती जा रही तथा बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों की किश्तों को न चुकाने से ब्याज दर बढ़ रही है व अप्रिय स्थितियां निर्मित हो रही हैं, जो कतई उपभोक्ताओं के हित में नहीं है।
संघ स्पष्ट कर देना चाहता है कि प्रशासन व प्रबंधन की इन विफलताओं के चलते आने वाली समस्याओं व विद्युत तंत्र में आने वाली स्थिति के लिए अभियंताओं को जिम्मेदार न ठहराया जाए। इस अव्यवस्था के लिये पूर्ण रूप से शासन एवं प्रशासन की दोष पूर्ण नीतियां जिम्मेदार हैं। वर्तमान में एक ओर जहां शासन द्वारा सब्सिडी की राशि लगभग 20,000 करोड़ रुपये वितरण कंपनियों को प्रदान नहीं की जा रही है, वहीं दूसरी ओर मैदानी अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर उपभोक्ताओं से वसूली हेतु अनैतिक दबाव डाल कर वसूली हेतु मजबूर किया जा रहा है।
अभियंता संघ ने कहा कि जहाँ प्रदेश में वितरण नेटवर्क लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं लंबे समय से स्थाई भर्ती को प्रयास पूर्वक रोका जा रहा है। स्थाई भर्ती न होने तथा रिटायरमेंट होते रहने से स्थाई मैनपावर की भारी कमी हो गई है। इसे संविदा तथा आउट सोर्स कर्मियों को नियमित करके सुधार किया जा सकता है।
कार्मिकों की कमी से इससे सामान्य कार्य प्रभावित हो रहे हैं। मीटर रीडर व मेन्टेनेंस कर्मचारी कम होने से एक और जहां रेवेन्यू कम होता जा रहा है, वहीं कर्मियों पर राजस्व उगाही का प्रशासनिक दबाव अत्यधिक बढ़ रहा है। वास्तविक परिस्थिति तथा उनके लिए व्यवहारिक हल ढूंढने के बजाय कंपनी प्रबंधन द्वारा अमर्यादित व्यवहार कर हमेशा वेतन कटौती की बात की जाती है।
संघ ने कहा कि बिना समुचित सुरक्षा के ही अत्यधिक दबाव के चलते विद्युत कर्मी कार्य करने को मजबूर हैं। राजनीतिक एवं प्रशासनिक दबाव के चलते, कार्य की आवश्यकतानुसार न्यूनतम उपलब्ध मैनपावर का अभियंताओं द्वारा किया जा सकने वाला युक्तियुक्तकरण भी संभव नहीं हो पाता है। संपूर्ण परिस्थितियां अभियंताओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों को खतरे में डालने वाली है। इस दिशा में शीघ्र ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
अपने पत्र में अभियंता संघ ने कहा है कि प्रबंधन व प्रशासन की जिम्मेदारी के मूल कार्य में अक्षमता के लिए इंजीनियरों को दोष देने से मूल समस्या किस प्रकार हल हो सकेगी, इस पर शासन को समीक्षा करने की आवश्यकता है। लेकिन पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि शासन एवं प्रबंधन द्वारा मासिक समीक्षा बैठकों में केवल राजस्व को लेकर ही चर्चा की जाती है एवं यदि कोई मैदानी अधिकारी मानव संसाधन की कमी एवं अन्य सुविधाओं के संबंध में बताना चाहता तब प्रशासन द्वारा उनके सुझावों को एकतरफा नकार दिया जाता है।
इस संबंध में अभियंता संघ का अनुरोध है कि यदि वास्तव में शासन एवं प्रबंधन मध्य प्रदेश की विद्युत व्यवस्था में सुधार के लिये इच्छुक है तो मानव संसाधन के साथ-साथ अन्य संसाधन उपलब्ध कराते हुये अभियंताओं के सुझावों पर ध्यान देते हुये, वसूली का लक्ष्य निर्धारित किया जाये तो उसको पूरा किया जा सकता है।