Tuesday, November 5, 2024
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सामाजिक, आर्थ‍िक एवं सह-अस्त‍ित्व के संदर्भ में लैंगिक समानता के आयाम विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी आयोजित

शासकीय मानकुंवर बाई कला एवं वाण‍िज्य स्वशासी महाविद्यालय के तत्वावधान में ‘सामाजिक, आर्थ‍िक एवं सह-अस्त‍ित्व के संदर्भ में लैंगिक समानता के आयाम’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए नानाजी देशमुख पुश चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसपी तिवारी ने कहा कि महिलाओं ने देश के विकास में अग्रणी व महत्वपूर्ण भूमिका‍ निभाई है। महिलएं न केवल घरों को संभालती हैं बल्क‍ि उन्होंने समाज के व‍िभि‍न्न क्षेत्रों में उन्होंने रचनात्मक कार्य किए हैं लेकिन इसके बावजूद महिलाओं को असामनता का सामना करना पड़ता है। देश में जनसंख्या की दृष्ट‍ि से अभी भी पुरूष व महिलाओं का अनुपात कम है। इसके लिए पूरे समाज को अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा।

राष्ट्रीय संगोष्ठी में बीज वक्तव्य डॉ. बीआर अम्बेडकर राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. आशा शुक्ला ने दिया व अध्यक्षता मानकुंवर बाई महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. संध्या चौबे ने की। संगोष्ठी का संयोजन डॉ. कविता चतुर्वेदी, डॉ. उज्जवला खारपाटे, प्रो. सबीहा हुसैन, डॉ. सुनीता चंदेल व डॉ. संध्या देव ने किया।

डॉ. आशा शुक्ला ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि भारत में लड़के और लड़कियों के बालपन के अनुभव में बहुत अलग होता है यहाँ लड़कों को लड़कियों की तुलना अधिक स्वतंत्रता मिलती है, जबकि लड़कियों की स्वतंत्रता में अनेकों पाबंदियाँ होती है। इस पाबंदी का असर उनकी शिक्षा, विवाह और सामाजिक रिश्तों, खुद के लिए निर्णय के अधिकार आदि को प्रभावित करती है। लिंग असमानता एवं लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव जैसे जैसे बढ़ती जाती हैं इसका असर न केवल उनके बालपन में दिखता है बल्कि वयस्कता तक आते आते इसका स्वरूप और व्यापक हो जाता है। नतीजतन कार्यस्थल में मात्र एक चौथाई महिलाओं को ही काम करते पाया जाता है।

संगोष्ठी में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, राजस्थान व बिहार आदि राज्यों से विषय विशेषज्ञ के प्रतिभागी शामिल हुए। संगोष्ठी में शामिल हुए प्रतिभागियों ने कहा कि लिंग भेद की धारणा की समस्या और, परिणामस्वरूप, लैंगिक असमानता आज भी एक सामयिक मुद्दा बनी हुई है। इस तथ्य के बावजूद कि लैंगिक असमानता की प्रकृति और सामाजिक परिस्थितियाँ बदल गई हैं, समाज, संगठनों, व्यवसाय और राजनीति में लैंगिक असमानता मौजूद है। लैंगिक असमानता की निरंतरता को “रुकी हुई प्रगति” की घटना कहा गया। अर्थव्यवस्था में भाग लेने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, स्थिति और आय के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच निरंतर असमानता है।

इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. नंदनी भारिल्ल, डॉ. मनोज प्रियदर्शन, डॉ. पृथा बैनर्जी, डॉ. रागिनी उपाध्याय उपस्थि‍त थीं। संगोष्ठी को सफल बनाने में डॉ. सुषमा मेहरा, डॉ. नुपूर न‍िखि‍ल देशकर, डॉ. विजया कोष्टा, डॉ. तुहिना द्विवेदी, डॉ. श‍िबी केशरी, डॉ. सुनील दुबे का योगदान रहा। संगोष्ठी का संचालन डॉ. सुनीता सोनी ने और आभार प्रदर्शन डॉ. कविता चतुर्वेदी ने किया।

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