रबी सीजन में उर्वरक ले लिए परेशान हो रहे किसानों के लिए राहत भरी खबर है। उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने बताया कि जबलपुर जिले में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक का स्टॉक है और किसानों को उनकी मांग के अनुरूप में अनुरूप पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी कराया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि जिले में यूरिया 6 हजार 137.546 मेट्रिक टन, डीएपी का 1हजार 877.1 मेट्रिक टन, एनपीकेएस का 2 हजार 122.475 .टन, म्यूरेट ऑफ पोटाश 227.15 मेट्रिक टन एवं सुपर फास्फेट 6 हजार 588.2 मेट्रिक टन का भण्डारण है। साथ ही कृषकों को उनकी मांग अनुसार उर्वरक कृषक की जोत सीमा के आधार पर उपलब्ध कराया जा रहा है।
रवि आम्रवंशी ने बताया कि प्रायः किसान डीएपी एवं यूरिया का बहुतायत से प्रयोग करते हैं । डीएपी की बढ़ती मांग एवं ऊंची दर के कारण कृषकों को कई बार समस्या का सामना करना पडता है। उन्होंने किसानों को कम्पोजिट उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह देते हुये बताया कि डीएपी से केवल नत्रजन एवं स्फुर की आपूर्ति होती है ,जबकि कम्पोजिट उर्वरक एनपीकेएस से नत्रजन, स्फुर, पोटाश एवं सल्फर की पूर्ति होती है जो फसलों के लिये ज्यादा लाभकारी है।
रवि आम्रवंशी ने कहा कि किसान डीएपी के स्थान पर कृषक यदि सिंगल सुपर फास्फेट, एनपीके (12:32:16), एनपीके (15:15:15), एनपीके (20:20:0:13) एवं एनपीके (16:16:16) का उपयोग करें तो उन्हें आर्थिक लाभ के साथ अधिक उत्पादन उच्च गुणवत्ता का प्राप्त हो सकेगा। क्योंकि पोटाश के कारण फसल ज्यादा स्वस्थ रहेगी एवं कीटव्याधि के प्रति सहनशीलता बढ़ती है। साथ ही फसल का उत्पाद चमकदार एवं उत्तम गुणवत्ता का होता है।
उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने बताया कि एनपीकेएस के रूप में उर्वरक का उपयोग करने पर होने वाले फायदे को भी कृषकों तक पहुँचाया जा रहा है । डीएपी के स्थान पर एनपीकेएस उर्वरक उपयोग करने हेतु लगातार प्रचार प्रसार कर किसानों से अनुरोध भी किया जा रहा है, ताकि फसलों में संतुलित उर्वरक की आपूर्ति होकर अधिक उत्पादन एवं आनाज की उत्तम गुणवत्ता प्राप्त हो सके।
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं यूरिया और डीएपी
जिले के कृषकों द्वारा संतुलित उर्वरक एनपीके के रूप में जो उठाव किया गया है। उससे कृषकों का रूझान एनपीके के उपयोग करने में बढ़ता नजर आ रहा है। किसानों द्वारा अभी तक जिले में विभिन्न कंपनियों के एनपीके उर्वरक 1 हजार 728.65 मेट्रिक टन का उपयोग किया गया है। जबकि विगत वर्ष पूरे रबी सीजन में 3 हजार 562.65 मी. टन एनपीके का उपयोग हुआ था। कृषकों को निर्धारित दर पर एवं मानक स्तर का उर्वरक प्राप्त हो सके इसके लिये विभिन्न दल बनाकर निरंतर निगरानी रखी जा रही है।
तरल नैनो से बीज उपचार की सलाह
उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने ज्यादा उत्पादन लेने के लिये किसानों को पाँच मिली लीटर तरल नैनो डीएपी से एक किलोग्राम बीजों को उपचारित कर 30 मिनट तक छाया में सुखाने के बाद बुवाई करने की सलाह भी दी है। उन्होंने बताया कि तरल नैनो डीएपी की पाँच सौ मिली लीटर की बॉटल से 100 किलो ग्राम गेहूँ का बीज उपचारित किया जा सकता है। इससे दानेदार डीएपी के उपयोग में 50 फीसदी की कमी की जा सकती है।
चना फसल हेतु किसानों को दी गई सम सामयिक सलाह
इसके अलावा किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने चने की फसल को लेकर किसानों को समसामयिक सलाह दी है । उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने कहा कि जिन खेतों में उकटा रोग एवं कॉलर रोग का प्रकोप प्रतिवर्ष होता है, उन खेतों में किसानों को चने के स्थान पर अन्य फसलें जैसे गेहूं, अलसी इत्यादि की बुवाई करनी चाहिये। रवि आम्रवंशी ने किसानों को बुवाई पूर्व बीजोपचार हेतु दो ग्राम थायरम और एक ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से या वीटावेक्स (कार्बोक्सिन) 2 ग्राम से प्रति किलो बीज उपचारित करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि इसके बाद राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर प्रत्येक की 5 से 7 ग्राम मात्रा से बीज उपचारित किया जाना चाहिये। रवि आम्रवंशी ने कहा कि किसानों को चने की बुवाई ब्रोड बेड फरो या रिज फरो विधि से करना चाहिये, जिससे नमी संरक्षित रहेगी तथा उपज में भी वृद्धि होगी।