जबलपुर सहित पूरे मध्यप्रदेश में खाद का संकट गहरा गया है, मांग के अनुरूप आपूर्ति में भारी अंतर के कारण मारामारी और जगह-जगह बढ़ते दवाब के चलते अब प्रशासन के भी हाथ पाँव फूल रहे हैं। वह बेबस नजर आ रहा है। पूरी वितरण व्यवस्था चरमरा गई है।
भारत कृषक समाज के केके अग्रवाल ने इसका सबसे बड़ा कारण सरकार द्वारा इस वर्ष खाद आपूर्ति के बजट मे अप्रत्याशित कटौती बताया है। सरकार ने विगत वर्ष की तुलना मे इस वर्ष देश में निर्मित खाद और विदेशों से आयातीत खाद के मद में 25 हजार करोड़ से अधिक की कटौती की है। जब सरकार ने खाद खरीदने के लिए बजट मे प्रावधान ही कम कर दिया तो मारामारी, हायतौबा तो मचना ही है। विडंबना तो यह है की हमारे नुमाइंदों और सरकार के अनुशांगी संगठनों ने बजट को कृषक हितैषी व कृषकोन्मुखी बताते हुए प्रशंसा के पुल बाँधने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि हम सबको इसे ठीक करने के लिए सरकार पर दवाब बनाने की आवश्यकता थी।
केके अग्रवाल ने कहा कि अब इसके परिणाम सामने दिखने लग गये हैं और इसका खामियाजा किसान भुगतने मजबूर हैं। मांग और आपूर्ति में भारी अंतर के चलते बाजार मे नकली खाद का व्यापार तेजी से पनप रहा है, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार चरम पर है, किसान लुट रहा है, अफरा-तफरी का माहौल है। प्रशासन बेबस है। दुखद है कि सुबह 4 बजे से लाइन में खड़े रहकर, धक्के खाकर शाम को खाली हाथ घर लौटते अन्नदाता की हालत पर किसी को कोई चिंता नही है, कोई तरस नहीं। खेती पर गहराते संकट की इस घड़ी और अन्नदाता की इस दशा पर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता चिंतित करने वाली है। केके अग्रवाल ने सभी किसान भाइयों को एक होकर अपने हित के लिए आवाज़ उठाने आगे आने का आह्वान किया है।