Friday, December 27, 2024
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तिल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने किसान इस विधि से करें बीजोपचार और बोनी

जबलपुर (लोकराग)। खरीफ के मौसम में तिल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को इसके बीजोपचार, बोनी की विधि तथा हानिकारक कीटों एवं रोगों से फसल को सुरक्षित रखने के उपायों की जानकारी दी है।

उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने बताया कि तिल एक प्रमुख तिलहनी फसल है। उन्होंने तिल के बीजों की उन्नत किस्मों की जानकारी देते हुये बताया कि टी-4, टी- 12, टी-13 एवं टी-78 तिल के प्रमुख उन्नत किस्म के बीज हैं। किसानों को फसल का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ क्षेत्र में 4 से 5 किलोग्राम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है। रवि आम्रवंशी ने बताया कि बीज जनित रोग जड़ गलन की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से केप्टान या थीरम फफूंदनाशक से उपचारित करना चाहिए अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए।

रवि आम्रवंशी ने किसानों को बताया कि बुवाई की विधि का तिल की उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। किसानों को तिल की बुवाई सीधी पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्तियों के बीच की दूरी परस्पर 30 से 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए. साथ ही दो पौधों के बीच की दूरी भी 10 से 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। तिल के बीज का आकार छोटा होने के कारण इसे गहरा नहीं बोना चाहिये। तिल की खेती के लिए मटियार रेतीली भूमि उपयुक्त है लेकिन अम्लीय या क्षारीय मिट्टी अनुपयुक्त है। उन्होंने बताया कि तिल की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 5.5 से 8.0 होना चाहिए

रवि आम्रवंशी ने तिल की बोनी से पहले खेतों को तैयार करने की विधि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पिछली फसल को लेने के बाद मिट्टी को पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए। मानसून आने से पहले खेत की जुताई कर समतल करना चाहिए तथा एक या दो जुताई करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि तिल की बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय सड़ी हुई गोबर की खाद 10-15 टन प्रति एकड़ मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए तथा रासायनिक उर्वरक में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम फास्फोरस एवं 15 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।

हानिकारक कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम :-

उप संचालक ने किसानों से तिल फसल को हानिकारक कीटों से सुरक्षित रखने के उपायों को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि फसल में गाल मक्खी कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यू. पी. या क्यूनालफास 25 ई.सी. की एक लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा फली एवं पत्ती छेदक से फसलों की सुरक्षा के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यू. पी. या कार्बोरील 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

रवि आम्रवंशी ने तिल के पौध की जड़ एवं तना गलन रोग से रोकथाम के लिए आवश्यक उपायों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किसानों को बीज की बुवाई से पूर्व बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इस बीमारी से ग्रसित खेत में लगातार तिल की उपज नहीं करनी चाहिए। उन्होंने झुलसा एवं अंगमारी की रोकथाम के लिए किसानों को मैन्कोजेब या जिनेब डेढ़ किलोग्राम या कैप्टान दो से ढाई किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने तथा 15 दिन बाद इसे पुनः दोहराने की सलाह दी।

रवि आम्रवंशी के मुताबिक शुरुआती पैंतालीस दिनों तक तिल की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना पौधों की वृद्धि और विकास में मदद करता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए किसानों को तिल के बीज बोने के तुरंत बाद एलकोलर 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या 60 मिलीलीटर एलकोलर 10 लीटर पानी में मिलाकर जमीन पर स्प्रे करना तथा आवश्यकता के अनुसार हाथ की निराई और गुड़ाई करना उचित है। बोनी से पूर्व या बोनी के बाद फूल और फली आने की अवस्था अच्छी उपज के लिये सिंचाई की क्रांतिक अवस्थायें हैं। किसानों द्वारा इन तीनों अवस्थाओं में सिंचाई करना फसलों के लिए लाभकारी होता है।

उन्होंने बताया कि तिल की फसल ढाई महीने में पक्के तैयार हो जाती है। फसल की सभी फल्लियाँ प्राय: एक साथ नहीं पकती किंतु अधिकांश फल्लियों का रंग भूरा पीला पड़ने पर ही फसल की कटाई करना चाहिये। तिल का उत्पादन लगभग इसका 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। उपरोक्त वर्णित विधि को अपनाकर किसान उन्नत तारीके से तिल की खेती कर सकते हैं। खरीफ मौसम के साथ-साथ इसकी बुवाई गर्मी और अर्ध-सर्दी के मौसम में भी की जाती है।

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