कामशक्ति बढ़ाए औषधीय गुणों से भरपूर ब्रह्मवृक्ष पलाश

सनातन संस्कृति में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद में ‘ब्रह्मवृक्ष’ कहा गया है। पलाश के पाँचों अंग (पत्ते, फूल, फल, छाल व मूल) औषधीय गुणों से पूर्ण हैं। यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है। इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं। इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं।

पलाश के बीज उत्तम कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं। इसकी गोंद हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है। पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है व बढ़ती भी है। वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।

पलाश के द्वारा उपचार

  • महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें।
  • अण्डकोषों की सूजन भी पुल्टिस से ठीक होती है।
  • 20 ग्राम पलाश के पुष्पों को रात भर 200 मिली ठंडे पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द तथा मूत्र के साथ रक्त का आना बंद हो जाता है।
  • पलाश की सूखी हुई कोपलें, गोंद, छाल और फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन दूध के साथ सुबह शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।
  • रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
  • पलाश की ताजी जड़ों का अर्क निकालकर एक-एक बूँद आँखों में डालते रहने से मोतियाबिंद, रतौंधी इत्यादि सब प्रकार के आँख के रोगों से राहत मिलती है।
  • ज्यादा गर्मी, ज्यादा ठंड या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण नाक से खून बहने पर रात भर 100 मिली ठंडे पानी में भीगे हुए 5-7 पलाश फूल को छानकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से नकसीर बंद हो जाती है।
  • पलाश का औषधीय गुण घेंघा को ठीक करने में मदद करता है। पलाश के जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगंड में लाभ होता है।
  • पलाश की छाल और शुंठी का काढ़ा या पलाश के पत्ते का काढ़ा बना लें। 30-40 मिली मात्रा में दिन में दो बार पिलाने से आध्मान (अफारा) तथा उदरशूल या पेट दर्द में आराम मिलता है।
  • पलाश की ताजी जड़ का रस निकालकर अर्क की 4-5 बूँदें पान के पत्ते में रखकर खाने से भूख बढ़ती है।
  • पलाश के फूलों को उबालकर पीसकर सूखा कर पेडू पर बाँधने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र संबंधी समस्या) तथा सूजन में लाभकारी होता है।
  • 20 ग्राम पलाश के पुष्पों को रात भर 200 मिली ठंडे पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द तथा मूत्र के साथ रक्त का आना बंद हो जाता है।
  • पलाश की सूखी हुई कोपलें, गोंद, छाल और फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन दूध के साथ सुबह शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।
  • बच्चे पेट में कीड़ा होने के कारण पेट दर्द होने पर एक चम्मच पलाश बीज चूर्ण को दिन में दो बार खाने से पेट के सब कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।
  • पलाश के बीज, निशोथ, किरमानी अजवायन, कबीला तथा वायविडंग को समान मात्रा में मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ देने से सब प्रकार के कृमि नष्ट हो जाती है।
  • अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहा तो 1 चम्मच पलाश बीज के काढ़े में 1 चम्मच बकरी का दूध मिलाकर खाना खाने के बाद दिन में तीन बार सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। इस समय में भोजन में बकरी का उबला हुआ ठंडा दूध और चावल ही लेना चाहिए।
  • ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है और अगर इसको नजरअंदाज किया गया तो स्थिति और भी बदतर होकर बवासीर से खून निकलने लगता  है। उसमें पलाश का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। 1-2 ग्राम पलाश पञ्चाङ्ग की भस्म को गुनगुने घी के साथ पिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में बहुत लाभ होता है। इसका कुछ दिन लगातार सेवन करने से मस्से सूख जाते हैं।
  • पलाश के पत्रों में घी की छौंक लगाकर दही की मलाई के साथ सेवन करने से अर्श (बवासीर) में लाभ होता है।
  • पलाश के बीजों को महीन पीसकर मधु के साथ मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात या अर्थराइटिस में लाभ होता है।
  • ढाक के पत्तों की पुल्टिस बाँधने से 3-5 ग्राम पलाश जड़ की छाल का चूर्ण बनाकर उसको दूध के साथ पीने से बंदगाँठ में लाभ होता है।
  • पलाश एवं कुसुम्भ के फूल तथा शैवाल को मिलाकर काढ़ा बनायें, ठंडा होने पर 10-20 मिली काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से पित्त प्रमेह में लाभ होता है।
  • पलाश की कोंपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ मिलाकर, 9 ग्राम की मात्रा में सुबह सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
  • पलाश का औषधीय गुण प्राकृतिक गर्भनिरोधक जैसा काम करता है। 10 ग्राम पलाश बीज, 20 ग्राम शहद और 10 ग्राम घी इन सबको घोटकर, इसमें रूई को भिगोकर बत्ती बनाकर स्त्री प्रसंग से तीन घण्टे पहले योनि में रखने से गर्भधारण नहीं होता।
  • पलाश की जड़ों का रस निकालकर, उस रस में 3 दिन तक गेहूँ के दानों को भिगो दें। उसके बाद इन दानों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन (premature ejaculation) और कामेन्द्रियों का ढीला पड़ जाने उससे राहत दिलाने में मदद करता है।
  • 5-6 बूँद पलाश मूल अर्क को दिन में दो बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव रुकता है और कामशक्ति प्रबल होती है।
  • 2-4 बूँद पलाश बीज तेल को कामेन्द्रिय के ऊपर (सीवन सुपारी छोड़कर) मालिश करने से कुछ ही दिनों में सब प्रकार की नपुंसकता दूर होती है और प्रबल कामशक्ति जागृत होती है।

डिस्क्लेमर- उपरोक्त लेख में दी गई जानकरी सामान्य मान्यताओं और घरेलू नुस्खों पर आधारित हैं, लोकराग न्यूज पोर्टल इसकी पुष्टि नहीं करता है। ज्यादा जानकारी के लिए संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य कर लें।