अज्ञात आकर्षण- नेहा सिन्हा

कल्पना करती मै नित,
समय से परे जाकर
अतीत याद आती मुझे
हर बार,
भीड़ में खोए हुवे
नए पुराने चेहरे
वर्तमान के नए चेहरों में उलझते, उभरते
किससे मिली अब तक?
किसको भूल गई?
कौन याद रह गया?
नहीं, मैंने सबको याद किया है, शायद
लिखा मैंने, जो स्मृति में आया
एक बार लिखा
किसी को अनेक बार दोहराया
उनको भी लिखा मैंने
अभी भी लिखती हूँ
नाम नहीं लिखा उसका
नाम ही बदला है
उसको नहीं
मैं मन के विचार लिखती हूँ,
संवेदना लिखती हूँ,
अभिलाषा लिखती हूँ
भाग्य लिपि नहीं लिखती
उसे कोई और लिखता है
कभी देखा नहीं
लोगों से सुना है,
ना जाने कौन सी भाषा में
जिसे स्वयं पढ़ता है
हम अज्ञान है, इससे
ये सफ़र की घटना है
हजारों चेहरे में
एक अज्ञात आकर्षण
स्तंभित निरीह सा मन
बिना विकल्प के
कोई हृदय को भा गया

-नेहा सिन्हा