अतीत के पन्नों से- डॉ उमेश कुमार राठी

जब भी आयी याद तुम्हारी
हम तस्वीर निहार लिये
सूनी सेज बिछी रहने दी
एकल रैन गुज़ार लिये

सुधियों की चौखट पर बाँधी
हमने वंदनवार अभी
खुशियों के इस वृंदावन में
शेष बचे आचार सभी
प्रीत समाहित है इस दिल में
पुष्प सुरभि भंडार लिये
जब भी आयी याद तुम्हारी
हम तस्वीर निहार लिये

नृत्य करें आशा अभिलाषा
प्रेम पयोदित जीवन में
नित्य लिखें भाषा परिभाषा
आभ सुभाषित निधिवन में
सावन में मधुमाता यौवन
पुलकित नयन गुहार लिये
जब भी आयी याद तुम्हारी
हम तस्वीर निहार लिये

चाह नहीं है भव्य महल की
फूँस मढ़ैया काफी है
धूम मचादे जो आँगन में
सोन चिरैया काफी है
जोड़ लिये हैं सपन सलौने
नयनों में मनुहार लिये
जब भी आयी याद तुम्हारी
हम तस्वीर निहार लिये

मीत हमारे आज पधारो
सुरभित होगी दीवाली
रंग फुहार उड़ेंगी नभ में
रोज मनेगी फिर होली
चिर अनुबंधन करके तुमसे
प्यार खड़ा उपहार लिये
जब भी आयी याद तुम्हारी
हम तस्वीर निहार लिये

-डॉ उमेश कुमार राठी