अनुबंध न टूटें रिश्तों के- स्नेहलता नीर

अनुबंध न टूटें रिश्तों के, आओ कुछ पल संवाद करें
इस रंग बदलती दुनिया में, कुछ भूल चलें, कुछ याद करें

छल-दंभ-स्वार्थ, विद्वेष-भाव, रिश्तों में कटुता घोल रहे
सिक्कों के बदले सच्चाई, क्यों रोज तराजू तोल रहे
सौजन्य और सद्भावों से, अंतर्मन को आबाद करें

कोमल जिह्वा को क्यों कटार, समझें क्यों रार-प्रहार करें
मिलकर धरती को स्वर्ग-लोक, हम सकल विश्व-परिवार करें
क्यों करें अपावन वचनों को, बोली को अनहद नाद करें

पश्चिमी हवाएँ ललचातीं, पर साथ नहीं हमको बहना
पुरखों की सीखों में ढलकर, सुखदायी- छाँव तले रहना
शुभ संस्कार से अभिमंत्रित, पक्की अपनी बुनियाद करें

मनुहार करें हम प्यार करें, अंतर् को पारावार करें
दूजे की राहों के कंटक, बनकर क्यों अत्याचार करें
अपनी अनुरागी कुटिया को, हम चलो राज-प्रासाद करें

रिश्तों की क्यारी-क्यारी में, अपनेपन का अहसास भरें
चाहत के फूल पिरोकर हम, जीवन को मोती-माल करें
कड़वी जहरीली यादों को, अंतर्घट से आजाद करें

-स्नेहलता नीर