आँखों से वही- आशीष दशोत्तर

बनकर चराग तम को मिटाने में लगा है
हर सम्त नई रोशनी लाने में लगा है

उसने ही हमें थपकियां दे-दे के सुलाया
आँखों से वही नींद चुराने में लगा है

अनजान अभी है वो ज़माने की हवा से
बच्चा अभी पतंग उड़ाने में लगा है

मतलब ज़रूर होगा उसे कोई न कोई
दुश्मन को तभी दोस्त बनाने में लगा है

उसकी लकीर तू ही बता कैसे बढ़ेगी
सब की लकीर ही वो मिटाने में लगा है

दौलत के लिए आपने हर फर्ज़ भुलाया
आशीष वही फर्ज़ निभाने में लगा है

-आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
रतलाम (मप्र)
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