आईना- शिवम मिश्रा

आईना- शिवम मिश्रा

अक्सर मैं देखता सुनता रहा हूं किस्से और कहानियों में,
कोई जादुई आईना जो रखा होता है किसी बन्द कमरे में
जिसे छूने से या उसमें अपना चेहरा देखते ही
हम पहुंच जाते हैं एक रहस्यमई दुनिया के नए सफ़र पर
मैं अक्सर ये सोचता हूं कि काश कोई ऐसा आईना होता मेरे पास
जो होता मेरे बन्द कमरे में जिससे मैं सैर करता दूसरी दुनिया का
जहां से मैं ढूंढ़ पाता उन सवालों का जवाब
जो इस दुनिया में अब तक अनसुलझे ही रह गए
जहां मैं बसा सकता प्यार के उजड़े दुनिया को
जहां कोई समाज किसी के प्रेम का हत्या ना कर पाता
जहां कोई भूखा ना सोता जहां कोई दुःख ना होता
खुशियों का कारोबार करने वाले उस जादुई आईने में
मैं बसा सकता ऐसी दुनिया जहां एक ही धर्म हो इंसानियत की

-शिवम मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र