आओ सुबह बनकर- अंजना वर्मा

मन साँझ-सा बोझिल है,
तुम बनके सुबह आओ

गहराता जाता है
हर पल ये अंधेरा
तनहाई के नागों ने
इस जान को है घेरा
तुम चाँद बनो आओ,
थोड़ी चाँदनी दे जाओ

ये राह कई जन्मों की,
तुम तक फिर भी ना पहुँची
क्यों सफर हुआ ना पूरा?
मंजिल से दूरी अब भी
ख़त यूँ ही रहा भटकता,
तुम खुद ही चलकर आओ

कितनी बातें करती हूँ,
एकाकीपन में अपने
जैसे तुम सामने हो,
मेरे इस निर्जन में
त्योहार ही बन जाएगा
वो दिन तुम जिस दिन आओ

-अंजना वर्मा
मुजफ्फरपुर, बिहार)
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अंजना वर्मा समकालीन हिन्दी रचना- परिदृश्य का एक जाना-पहचाना नाम है। कविता, कहानी, गीत, लोरी, दोहा, यात्रावृत्त, समीक्षा आदि विधाओं में इनकी डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। फिलहाल नीतीश्वर महाविद्यालय, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में प्रोफेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये अपनी रचनाशीलता से जुड़ी हुई हैं।