इश्क़- दीपक क्रांति

चलते-चलते ठहरने का मज़ा ही कुछ और है,
निखरने के लिए बिखरने का मज़ा ही कुछ और है

इश्क़ खुद इश्क़ के काबिल है महबूबा हो न हो,
इश्क़ से इश्क़ करने का मज़ा ही कुछ और है

बहुत लोग जी रहे मर-मर के मरने के लिए,
ज़िंदा रहने के लिए मरने का मज़ा ही कुछ और है

ख़ौफ़ नहीं मज़हब या सियासत का क्रांति को,
पर अपने ज़मीर से डरने का मज़ा ही कुछ और है

-दीपक क्रांति
चंदवा, लातेहार, झारखण्ड
मोबाइल-7004369186