इश्क़ वालों- रकमिश सुल्तानपुरी

दर्द, ग़म, तन्हा जुदाई के अलावा रास्ता क्या
इश्क़ वालों! ये बताओ आज़कल सबको हुआ क्या

एकतरफ़ा दर्द हो तो कामगर मजदूर सह ले
मर्ज़ हो या भूख दोनों के लिए किससे दुआ क्या

ऐ ज़मानों! पूछने आयी पता इंसानियत अब
आदमी ने आदमी को अब तलक आख़िर दिया क्या

जाति धर्मो में हमेशा बांटकर रख्खा जिन्होंने
धर्म के उन रहनुमाओं को यहाँ आख़िर मिला क्या

राह चलते मिल गयी हों मंजिलें जिसको कभी तो
बेवज़ह ही यार क़िस्मत से भला उसको गिला क्या

ख़ैर! उसका वक़्त है ख़ुशियाँ मनाने दो उसे भी
दर्द से गुज़रा नही तो दर्द का उसको पता क्या

ख़्वाब देखा और रकमिश हो गया पूरा यहाँ तो
चाहतों की बेकसी का फिर अलग अपना मज़ा क्या

-रकमिश सुल्तानपुरी