उठा लेखनी- शैली अग्रवाल

उठा लेखनी
आज फिर कुछ लिख रही हूँ
लिखते-लिखते मैं तुम्हें जी रही हूँ
तुम याद क्यों इतना आते हो,
खुद सवाल कर
खुद जवाब दे रही हूँ
मेरे दिल में घर बनाकर तुम रहने लगे,
पर तुझमें अपने को कहीं खोज रही हूँ
उठा लेखनी
आज फिर कुछ लिख रहीं हूँ

तुम्हारी खामोशी से खामोश हूँ मैं,
पर ख़्यालों में
तुमसे संवाद कर रही हूँ
सबसे हसीं एहसास खामोश प्रेम है,
इस एहसास से प्रेम प्रीत कर,
मैं अपना यौवन जी रही हूँ
उठा लेखनी
आज फिर कुछ लिख रही हूँ

-शैली अग्रवाल