एक झरोखा- अनामिका वैश्य

क्या बताएं क्या होता है सखे तुझसे मिल के
एक झरोखा खुल जाता है कमरे का दिल के

प्रिये महका देते हैं एहसास तेरे रोम-रोम मेरा
कली महक उठती है जैसे फ़ूलों सा खिल के

देखकर ग़ैरों के संग तुझको जानेमन ओ मेरे
रह जाती उसपल आईना ख़ुद में ही छिल के

यार से प्यार के सिवा में एक ही अरमाँ रखा
ऐसे पारदर्शी हो बंधन जैसे हो रंग सलिल के

रूठने पर मेरे मना लें नेह से दुलार से अपने
मनुहार करो प्रिय प्रेम से ज़ख़्म सारे सिल के

-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ