एक पेड़ की हत्या- विनीता राहुरीकर

ध्वस्त हो जाता है
एक घौंसला
तिनका-तिनका बना था
तिनकों में ही बिखर जाता है
उसके साथ ही
बिखर जाती है
कुछ नन्हे प्राणों की आस
टूट जाते हैं ममत्व से सहेजे
अंडे चिड़िया के
सुनाई नहीं देती मगर
उसके व्याकुल मन की चीत्कार

गिर जाता है एक छत्ता
बह जाती है सारी मिठास
जमीन पर
जो महीनों की मेहनत से
भर रहीं थी डंक वाली
मधुमक्खियां
फूलों से उधार माँगकर
अचानक धूल में मिल जाता है
उनका सारा परिश्रम
अपना सारा जहर लेकर भी
असहाय सी हताश रह जाती हैं

गिर जाते हैं मिट्टी में
दाने, सूखे फल
जो जमा कर रखे थे
गिलहरी ने आने वाले समय के लिए
टहनियों के बीच कहीं
दबा पड़ा रहता है
बच्चा उसका तड़पता हुआ
गिलहरी की करुण पुकार
विलीन हो जाती है
टहनियों के तड़कने के शोर में

न जाने कितने कीड़े
न जाने कितनी मकड़ियाँ
बेघर हो जाते हैं
कोई गिनती नहीं
चिड़ियों का कलरव
सन्नाटे में तब्दील हो जाता है

कितने संसार उजड़ जाते हैं
एक पेड़ जब धराशायी होता है
अपने आश्रितों को अनाथ होते देख
खुद पेड़ का हाहाकार
क्या कभी सुन पाया है मनुष्य
नहीं कभी सुन नहीं पाया
कभी सुन भी नहीं पायेगा

-विनीता राहुरीकर