एक रोज कहा था तुमने- रूची शाही

एक रोज कहा था तुमने
कि तुम मुझपे अंधा विश्वास करते हो
जानते हो उसी रोज मैंने
बांध ली अपनी आंखों में पट्टी
और वरण किया मैंने
प्रेम में गान्धारी हो जाना
कि तुम्हारे सिवा अब मैं
किसी को नहीं देखूँगी

प्रेम करना और निभाना
दो अलग बात है
तुमने प्रेम किया मुझसे पर
तुम्हें कृष्ण होने की चाह थी
हज़ारों गोपियों से हँसी-ठिठोली करना
तुम्हें मुझसे अधिक प्रिय रहा
और फिर मेरा प्रेम तो
बांध रहा था तुम्हें
इसलिये मुक्त किया मैंने तुम्हें
इस घुटन भरे प्रेम से
और स्वीकार किया मैंने प्रेम में
राधिका बन जाना
कि सिर्फ और सिर्फ मैं
तुमसे ही प्रेम करूँगी

तुम अक्सर कहते थे
तुम कोई भी चीज बड़े शिद्दत से करती हो
फिर भी तुम्हें जरा भी भय नहीं था
कि मैंने अगर घृणा की तुमसे
तो कैसे सह पाओगे तुम
तुमने बार-बार चोट पहुंचाई
मेरे स्वाभिमान को
इसलिए तुमसे प्रेम करने के एवज़ में
मैंने खुद ही चुना
पत्थर की अहिल्या हो जाना
पर मुझे अब किसी राम का
इंतज़ार नहीं है क्योंकि
तुमसे प्रेम करने की सजा
मैंने स्वयं खुद को दी है
और इसे मैं अब
आखिरी साँस तक काटूंगी

-रूची शाही