ऐ मेरे बिछड़े हुए दोस्त- तारांश

ऐ मेरे बिछड़े हुए दोस्त
क्या तुम्हें याद नहीं आती मेरी
आज तो दुनिया है मुट्ठी में
कम कर दिए फासलें तकनीक ने
फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप जैसे
अनगिनत साधन है संपर्क के
रोज़ आते हैं उनपर सैकड़ों नोटिफिकेशन
हाय, हैल्लो, नमस्ते, कैसे हो?
जवाब देता हूँ मैं सबका
पर एक टीस रह जाती है
जो कचोटती है अंदर तक
जब होता हूँ बहुत अकेला
मैं इंतज़ार करता हूँ
तुम्हारे एक नोटिफिकेशन का
तुम्हारे एक संदेश का
इंतज़ार करता हूँ मैं
कि कब बोल पड़ोगे तुम
चलो आज गाँव के दूसरे छोड़ पर जो बगीचा है
तोड़ लाएं कुछ कच्ची इमलियाँ वहाँ से
चलो आधी रात को निकल पड़े जंगलों में
एक बेतुके से शर्त के लिए
या चलो देख लेते हैं उस तीसरे लड़के को
जो कोशिश करता था फूट डालने का
हमदोनों के दरम्यान

तुम लगातार बदलते हो अपनी तस्वीरें
अब तुम्हारे इवेंट्स भी बचपन वाले नहीं रहे
बार,कैफेटेरिया और मॉल जाने लगे हो तुम
अब एक अच्छी नौकरी है तुम्हारे पास
और एक खूबसूरत गर्लफ्रेंड भी
मैं देखता हूँ तुम्हें
खुशहाल ज़िंदगी को तुम्हारी
पर शायद तुम जानते ही नहीं
कि कौन कौन देखता है तुम्हें!
क्योंकि यह समझने का मौका ही कहाँ देती है
वह विशाल विकराल आभासी दुनिया

याद है तुम्हें
बचपन में हम
ख़्वाब देखा करते थे एक साथ बैठकर
कि हम यह करेंगे वह करेंगे बड़े होकर
और ‘गर्लफ्रैंड’जैसा शब्द तो
डिक्शनरी में था ही नहीं हमारे
कैसे असहज हो जाते थे
इस शब्द को जब हमसे जोड़ा जाता
पर अब कुछ नहीं रहा वैसा
तुम वह कर रहे हो चाहते थे जो करना
और सहज भी हो अपनी प्रियतमा के साथ।
खुश होता हूँ मैं बहुत तुम्हारी तस्वीरें देखकर
और निकल जाता हूँ मुस्कुराकर
स्क्रॉल करते हुए फेसबुक के पेज को

ऐ मेरे बिछड़े हुए दोस्त
नित नए नए मित्र बनते हैं मेरे भी
उस वृहद आभासी दुनिया में
शानदार होता है सबका प्रोफाइल
एकदम एक से बढ़कर एक
पर देखते हुए उनकी तस्वीरों को
मुस्कुरा नहीं पाता मैं
पता है क्यों मेरे मित्र?
क्योंकि देखकर तुम्हारी तस्वीरें
ताज़ा हो जाती है हर वो याद
याद आ जाती है हमारी वो सारी बेवकूफियाँ
सारी शैतानियाँ और वो बचपन
जिसे साथ में कभी ख़ूब जिया था हमने
वो याद ही है जो बुने ही नहीं मैंने
अपने नए आभासी दोस्तों के साथ
इसलिए भी याद आती है तुम्हारी
साथ ही कुछ सवाल भी आता है मन में
क्या तुम्हें याद नहीं आती मेरी?
क्या तुम नहीं हँसते मेरी तस्वीरें देखकर?
क्या तुम ज़िक्र नहीं करते मेरी मूर्खता का?
जिसका जवाब कभी नहीं मिला मुझे
शायद कभी न मिले
पर तुम्हारी तस्वीरें मैं देखता रहूँगा
और मुस्कुराता रहूँगा मुसलसल
स्क्रॉल करते हुए फेसबुक को

-सूरज रंजन ‘तारांश’