कहर कोरोना का- दीपक क्रांति

ये करुण-क्रंदन ये कहर कोरोना का
किसने फैलाया ऐसा ज़हर कोरोना का

कैद में बीत रहे दिन, पल-पल प्रलय सा लगे,
कब तक चलेगा ये मौत का सफ़र कोरोना का

नहीं पूछ रहा कोई हाल-ए-दिल यहाँ गैरों का,
अपनों की गलियों में भी खौफनाक मंज़र कोरोना का

हाथ से हाथ, गले से गला नहीं मिलाता कोई,
प्यार पर भारी कैसा ये डर कोरोना का

अधर्मी विषाणु-नाश को धर्म विफल, विज्ञान तत्पर,
पर क्यों धर्म-विज्ञान भेद न पा रहे घर कोरोना का

कहीं मुँह पे पट्टियां, किसी से दूर हैं रोटियां,
सुनसान सड़कों पर सुगबुगाता स्वर कोरोना का

आसरे से दूर है आदमी कितना मजबूर है साहब,
चाँद फ़तह करनेवाले पर कैसा असर कोरोना का

आजीवन ऋणी रहेगा दीपक सा हर आमों-खास,
कर दे स्थायी अंत कोई अगर कोरोना का

-दीपक क्रांति
चंदवा, लातेहार, झारखण्ड,

मोबाइल-7004369186