कुछ आशाओं के- सचिन मिश्र

यह जीवन की रचना है इसकी भी एक रवानी है
यह कष्टों का संसार बना संघर्षों से बीती जवानी है

एक प्रलय सा छाया जीवन में यह प्रेरणाओं की एक निशानी है
कहर सा आया सपनों में ज्वालाओं से उमड़ी जवानी है
सुनो गौर से मुझको यारों खुद के लिए लिखी एक कहानी है

कुछ आशाओं के दीप जले हो,
जैसे हम-तुम फिर से मिले हो
एक प्रश्न का उत्तर पाने,
जैसे यम खड़ा हो सीना ताने
कुछ किस्सों की शुरुआत हुई हो,
मानो ऐसा लगा कि पूनम की रात हुई हो
इस जीवन में ना हो संभव महज एक निशानी है
सुनो गौर से मुझको यारों खुद के लिए लिखी एक कहानी

हुआ था मुझको भी कुछ ऐसा,
जैसे मानो हुआ हो पहले जैसा
गले मिला मुझको वो ऐसे,
बाद मिला हो बरसों के जैसे
स्वर्णिम युग के सपनो का फिर से प्रारंभ हुआ,
जैसे इस जीवन का पुनः फिर से आरंभ हुआ
कल्पना मात्र रही जीवन की महज उम्र यूं ही बितानी है
सुनो गौर से मुझको यारों खुद के लिए लिखी एक कहानी है

-सचिन मिश्र ‘मिज़ाजी’
भिवानी, हरियाणा
मोबाइल- 7404624679