क्यों तुम्हारी याद आई- प्रज्ञा मिश्रा

पहले वो शहर अनजाना था,
मगर अपना सा लगता था
क्योंकि वहाँ तुम्हारा बसेरा था
अब ये अपना शहर,
बेगाना, अनजान सा है
और तुम्हारा अब आशियाना भी,
टूटा मकान सा है
आँखों में एक सपना था,
जो बिल्कुल अपना था
हकीकत नहीं बना,
क्योंकि वो सपना था!
अब तुम नहीं हो,
सिर्फ तुम्हारी बेवफाई है
जब भी मैने भुलाया,
फिर क्यों तुम्हारी याद आई है?

-प्रज्ञा मिश्रा
पुणे