घर वास, कोरोना हताश- मनोज शाह

घर वास कोरोना हताश
छूट गई पीछे जीने की आस

ये मजबूरी के मुसाफिर
नमाजी है ना क़ाफिर

आजाद हिंदुस्तान के,
सबसे अभागी तस्वीर

पैरों में छाले पड़ गए है,
गठरी से झुक गया सिर

चेहरे पे भूख प्यास की छाया,
चल पड़े हैं बनकर मुसाफिर

चलते ही जा रहे हैं वे बेखबर,
नजाने कब सुबह होगी फिर

देख तेरी धरती की हालत,
कितना हो चुका है गंभीर

घर वास, कोरोना हताश
छूट गई पीछे जीने की आस

-मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क, मोती नगर,
नई दिल्ली