जीत- शिप्रा खरे शुक्ला

धोखे के बदले
नहीं मिलता है यश
ना ही कीर्ति
बल्कि बदले में मिलता है
कभी ना खत्म होने वाला
अपराध बोध और ग्लानि
जो चैन नहीं लेने देता है तुमको
किसी की मासूमियत से खेलना
बेचैन किए रहता है तुमको
भले ही ठहाकों पर तुमने
अपना अधिकार जमा रखा हो
लेकिन हँसी का खोखलापन
तुम चाह कर भी छुपा नहीं पाते हो
वर्चस्व की प्रतिद्वंदता में
तुम अपनी जीत नहीं पचा पाते हो

-शिप्रा खरे शुक्ला
जिला- खीरी, उप्र