जीवन का कल्याण- डॉ उमेश कुमार राठी

स्वेद बिना श्रमदान नहीं है
जीवन का कल्याण नहीं है
वाण रखे तरकश में लेकिन
लक्ष्य बिना संधान नहीं है

रेत पसरती जब तलहट में
मीन सिसकती नदिया घट में
नीर बिना होती घबराहट
मोक्ष बिना निर्वाण नहीं है

फाग महीना रंग खिले ना
जब तक जीव उमंग जगे ना
भूल गया अलि शुष्क सुमन को
गुल है पर गुलदान नहीं है

अनजान गली अनजान शहर
नित भीड़ जुड़े अब तीन प्रहर
लोग निवास करें बस्ती में
मुख पर मधु मुस्कान नहीं है

शब्द करें शृंगार अचानक
भाव कहें शुचि सार कथानक
रचता गीत सुखनवर निशदिन
पर मनहर उनवान नहीं है

माया मोह जगायी दिल में
अर्थ प्रबलता छायी जग में
मन उन्माद मचाया दंगल
बाकी कुछ अरमान नहीँ है

नित्य जगाती भोर अरुणिमा
पाठ पढ़ाती दिनकर गरिमा
चिर परिचित हैं जीव चराचर
क्या हिय को पहचान नहीं है

कंठ लपेटे जो विषधर को
शीश नवाता उस शशिधर को
मीत पुकार सुनेगा मेरी
पीड़ा से अनजान नहीं है

-डॉ उमेश कुमार राठी