जीस्त- डॉ कुसुम चौधरी

हाल अपना सुनाने
लगी ज़िन्दगी
इक़ ग़ज़ल गुनगुनाने
लगी ज़िन्दगी

जबसे ख़्वाबों में मेरे
वो आने लगे
ख़ुद-ब-ख़ुद मुस्कराने
लगी ज़िन्दगी

याद दिल से तुम्हारी
निकलती नहीं
पास तुमको बुलाने
लगी ज़िन्दगी

जबसे वादा किया मैंने
तुमसे ‘कुसुम’
साथ तेरा निभाने
लगी ज़िन्दगी

-डॉ कुसुम चौधरी