थोड़ी सी धूप- निधि भार्गव मानवी

सुनो
मैंनें थोड़ी सी धूप,
पल्लू में छुपाकर रख ली है
खामोशी से उतरती हुई शाम जब
उदास रात से मिलेगी न

तो मैं बिखेर दूंगी उसके कदमों तले,
ये मुट्ठी भर धूप
ताकि होने वाली हर सुबह
धरती पर एक नई जगमगाहट लिए आए

जिसकी सुनहरी दमक से,
चमक उठे, प्रकृति का कोना-कोना देखना
उजली धूप के ये चंद कतरे,
मायूसियों के इस मंज़र में
नया उल्लास भर देंगे

-निधि भार्गव मानवी