दो मुक्तक- ओशो नीलांनचल

एक किरदार की मीनार गिरी है कोई
बामो-दर हिल उठे दीवार गिरी है कोई
दौरे-जमहूर ने जिस वक़्त भी पलटा खाया
इंक़लाब आया है, सरकार गिरी है कोई

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कहाँ ठंडी बहारें हैं पति-पत्नी के रिश्तों में
सुलगते दिल निगाहें है पति-पत्नी के रिश्तों में
वफ़ा की रेत से इनकी मरम्मत की ज़रूरत है
दरारें ही दरारें हैं पति-पत्नी के रिश्तों में

-ओशो नीलांनचल