नज़्म- गुफरान बहराईची

गमे फिराक में आंसू बहा रहा हूँ मैं
जो मुझ पे बीत रही है सुना रहा हूँ मैं
अजीब ज़िन्दगी अपनी बिता रहा हूँ मैं
वतन से दूर अरब में कमा रहा हूँ मैं

रियाल पास हैं फिर भी गरीब जैसा हूं
नसीब होते हुए बदनसीब जैसा हूँ
रियाल के लिए घर से निकल तो आया था
दुआऐं साथ मगर अपनी माँ की लाया था

यगानगी का यहां पर समां लगा मुझको
किसी का कोई नहीं ये पता चला मुझको
तमाम उलझनें हैं बेबसी का आलम है
बिछुड़ गया हूं मैं अपनों से ये मुझे गम है

तसौवरात की महफिल सजाए बैठा हूं
कि दिल से याद सभी की लगाए बैठा हूं
यहां मैं खाना नहीं खुद पका के खाता हूं
म॔गा के या किसी होटल पे जा के खाता हूं

लजीज होता है लेकिन नहीं है घर जैसा
नसीब ज़ायका मुमकिन नहीं है घर जैसा
न माँ की दाल न बीवी के हाथ की रोटी
न दोस्तों के यहां के हलीम की बोटी

तरस रहा हूं वतन की गिजाएं खाने को
निहारती हैं तमन्नाएं दाने दाने को
रियाल का न शजर है जो मैं झिटक लाऊं
नहीं खजूर हैं सोने की जो उचक लाऊं

बस इक दुकान पे मेहनत से काम करता हूं
पये नसीब हथेली पे जान रखता हूं
इक ऐसा दौर भी आया कि होगया बीमार
बुखार ने किया मजबूर मुझको और लाचार

पर अपने काम पे जाना पड़ा मुझे फिर भी
कि हुक्मे आका बजाना पड़ा मुझे फिर भी
तमाम अपनों की इक जिंदगी बनाने में
हयाते निस्फ निकल ही गई कमाने में

मैं छोड़ आऊंगा दौलत सभी सऊदी की
करूंगा फिर नहीं चाहत कभी सऊदी की
बस अपने गांव में थोड़ा बहुत कमा लूंगा
मिलेगा जो वही गुफरान रिज़्क खा लूंगा

-गुफरान बहराईची
9140420308