निर्धन- वीरेन्द्र तोमर

दर्द उनके उठा तो खबर बन गई
बात हौदे की थी, चमक सत्ता की वो
बात थोडी सी थी पर खबर बन गई

कोई बंदन कर रहा, कुछ गुल्दस्ता लिये,
हर तरफ बन्दगी का माज्मा लगा,
पुछने कुशल छेम की झडी लग गई

लोग आते रहे, लोग जाते गये
चर्चे हर जुवां पे बस उनके ही थे
छीक भी उनकी कहानी बन गई

वही व्याकुल पडा था भुख से कोई,
देख के भी सभी अंजान थे,
जलती समा इनकी बुझ गई

जानकर भी सभी अंजान थे,
क्या हुआ था इसे न पुछे कोई,
प्राण निकले हैं कैसे ना जाने कोई

भेद निर्धन और निराधन का था,
अंतर दोनो के बीच इतना सा था,
दुनिया से इसकी रूह विदा हो गई

-वीरेन्द्र तोमर