प्यार के रंग से- राजीव कुमार

कितने प्यार के रंग से
तुमने भिगोया आज आँचल
किस बाग में सुबह महकती
टहनियों में आम की मंजरियां
घर के पास से गुजरता
रास्ता खूब धूप में
सुरभित जहां हैं
आज खुश होकर कहाँ आये
खेत खलिहान में
दोपहर की हवा
कहाँ से पास आती
कितनी दूर हँसती चली जाती
यह राह जीवन की कहीं थमती नहीं
ग्रीष्म के सघन वन का रास्ता
यहाँ सूना हो गया
रात्रि के अवसान का पहला पहर आया
यमुना किनारे चैत के दिन आज आये
सबने आनंद फागुन का मनाया
होली सूखे फूलों का गुलाल है
सबके तन मन को महकाता
गीत प्यार का सबने गाया
कितना भाता देर पहर तक
रंगों का त्योहार अनोखा आया

-राजीव कुमार झा