प्रकृति और पुरुष- शिवम मिश्रा

वो इश्क़ का मौसम था,
आसमां में काले मेघ उमड़ आए थे
गेहूं की बालियां खेत में लहलहा रही थी
सरसो का फ़ूल प्रकृति के गोद में खेल रहा था
उसी सरसो के खेत के पास मेड पर हम साथ बैठें थे
हाथों में हाथ थामे हम प्रकृति के सौन्दर्य को निहार रहे थे
तभी उसने कहा सुनो तुम मेघ हो
और मैं तुम्हारी बारिश
तुम पुरुष हो तो
मैं सौंदर्य के प्रमाद से भरी हुई प्रकृति
आज के दिन पुरुष के प्रकृति की मिलन की बेला है
मैं एक टक उसकी तरफ़ देख कर
उसके मन में उठने वाले उस भाव को टटोल रहा था
जिसका आज वो मिलन चाहती थीं
तभी वो उठ के क़रीब आ गई
और आसमां में बिजली के चमक के साथ
प्रकृति का मिलन पुरुष के साथ पूर्ण हुआ।
आसमां अब शांत था
मेघ वापस अपने-अपने घर को लौट गए थे
प्रकृति का सौंदर्य,
वातावरण को और ख़ूबसूरत बनाके
पुरुष को प्रणाम कर रही थी

-शिवम मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र