फागुन मास- किरण मिश्रा

फागुन मास पिया नहीं पास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास
किस संग खेलूँ प्रीति की होली
वैरी लागे सब हमजोल
कंगन-बिछिया पायल बोली
पिय बिन अधूरा सब श्रृंगार
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

गीत मादकता के कोयल गाये
भौंरा हर पल नेह लड़ाये
पी पराग अल्हड़़ बदमास
कलियों से करता परिहास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

कितना भी रस मनमे घोँलूँ
प्रेम पिचकारी सरब अंग धोलूँ
चंगिया चोली करती पुकार
किस संग बोलो फागुन खेलूँ
तुम बिन मोहन है दिल उदास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

टेसू-पलाश मौसम मे बिखरे
मादक बसन्त सबके हिय हरषे
सखियाँ डूबी रंग रंगोली
करती इत उत हँसी ठिठोली
भीगी सबकी अँगियाँ चोली
तुम बिन ये कैसा मधुमास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

सौतन मुरली तान सुनाये
रात-रात मोरा हिय झरसाये
पिया नहीं आये पिया नहीं आये
सौतन..पगली कहके बुलाये
दूर करो इसका उपहास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

प्रीत के रंग रंगी राधा प्यारी
मोहन तुमपे तन मन वारी
मन बसन्त हुआ तन पलाश
धरती भी कर ली सोलह श्रृंगार
सुन लो अब दिल की अरदास
प्रेम-प्यार सब…लगे बकवास

-किरण मिश्रा ‘स्वयंसिद्धा’
नोयडा