बिसरा ताजमहल- रंजना फतेपुरकर

कब चाहा था मैंने
सांझ पिघले जहां झील में
तुम मुझे वहां मिला करो
ना कहा कभी
धरती मिले जहां अम्बर से
उस क्षितिज पर मिला करो

कब चाहा था मैंने
पतझड़ के सूखे पत्तों पर
आहट मेरी सुना करो
ना कहा कभी
भीगी पलकों में
सपनों की तरह बस जाया करो

कब चाहा था मैंने
महक मिले जहां फूलों से
उन हवाओं में घुला करो
ना कहा कभी
सितारों के दीप बुझते ही
उषा की लाली में खिला करो

कब चाहा था मैंने
आसमां से टूटते तारों में
मन्नतों सा मुझे मिल जाया करो
ना कहा कभी
हसरतों में लिपटी
ख्वाहिशों सा मिल जाया करो

बस चाहा था मैंने
मुझे याद रखो
एक सूखे महके सुर्ख गुलाब की तरह
जो रहता है कविता की पुस्तक में
बिसरी यादों के
ताजमहल की तरह

-रंजना फतेपुरकर

परिचय-
नाम- रंजना फतेपुरकर
शिक्षा- एमए हिंदी
प्रकाशित पुस्तकें- 11
कहानी संग्रह अनुराधा, लघुकथा संग्रह बूंदों का उपहार, काव्य संग्रह रेशमी अहसास, महकते गुलाब। अनेक साहित्यिक संस्थाओं से पुरस्कृत। लाल परी नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया से तीसरा संस्करण प्रकाशित।
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से करीब 50 सम्मान एवं 35 पुरस्कार।
देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित। दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो इंटरनेशनल, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित। रंजन कलश, इंदौर की अध्यक्ष।