भले ज़माने- निशांत खुरपाल

मुद्दतों बाद जब हम कभी,
एक-दूसरे से मिला करते थे,
पहले जी भर कर एक-दूसरे का दीदार,
और फिर एक दूसरे से गिला करते थे

हमारे दौर में, मोहब्बत की
रंगत ही कुछ और हुआ करती थी,
हम जब भी एक-दूसरे के सामने आते थे,
तो आँखें झुका कर मिला करते थे

हम उसका हाल जानने के लिए,
बहाने से उसके घर जाया करते थे
हमारे अब्बू उसके अब्बू से और
हम उसकी आपा जान से मिला करते थे

उस दौर की यादें, आज भी
मेरी यादों में बसर करती है,
भले ही तब पैसे कम हुआ करते थे,
पर सभी मोहब्बत से मिला करते थे

बड़े बुजुर्ग कहा करते थे, कि वो
भले ज़मानों की बातें थी ‘खुरपाल’
और भले ज़माने के लोग,
भले ज़मानों में ही मिला करते थे

-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल,
पठानकोट